Quran Para 2 in Hindi | Quran Para 2 with Hindi Translation
अस्सलामुअलैकुम वरहमतुल्लाही वबरकातहू दोस्तों इस आर्टिकल में आप क़ुरान शरीफ़ का दूसरा पारा हिंदी में हिन्दी अनुवाद के साथ Quran Para 2 in Hindi पढ़ेंगे क़ुरान शरीफ के दूसरे पारे का नाम सयाकुल है इसमें 17 रुकू है।
पारा न० 2 हिन्दी में।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
सयकूलुस्-सुफहा-उ मिनन्नासि मा वल्लाहुम् अन् किब्लतिहिम मुल्लती कानू अलैहा , कुल लिल्लाहिल-मश्रिकु वल्मग्रिबु , यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तकीम (142)
बाज़ अहमक़ लोग ये कह बैठेगें कि मुसलमान जिस क़िबले बैतुल मुक़द्दस की तरफ पहले से सजदा करते थे उस से दूसरे क़िबले की तरफ मुड़ जाने का बाइस हुआ । ऐ रसूल तुम उनके जवाब में कहो कि पूरब पश्चिम सब ख़ुदा का है जिसे चाहता है सीधे रास्ते की तरफ हिदायत करता है (142)
व कज़ालि-क जअ़ल्नाकुम् उम्मतंव व-स-तल्लितकूनू शु-हदा-अलन-नासि व यकूनर्रसूलु अलैकुम् शहीदन् , वमा जअल्नल-किब्लतल्लती कुन्-त अ़लैहा इल्ला लिनअ्ल-म मंय्यत्तबिअुर्रसू-ल मिम्-मंय्यन्कलिबु अला अकिबैहि , व इन् कानत् ल-कबी-रतन् इल्ला अलल्लज़ी-न हदल्लाहु वमा कानल्लाहु लियुजी-अ ईमानकुम , इन्नल्ला-ह बिन्नासि ल-रऊफु़र्रहीम (143)
और जिस तरह तुम्हारे क़िबले के बारे में हिदायत की उसी तरह तुम को आदिल उम्मत बनाया ताकि और लोगों के मुक़ाबले में तुम गवाह बनो और रसूल मोहम्मद तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बनें और ( ऐ रसूल ) जिस क़िबले की तरफ़ तुम पहले सज़दा करते थे हम ने उसको को सिर्फ इस वजह से क़िबला क़रार दिया था कि जब क़िबला बदला जाए तो हम उन लोगों को जो रसूल की पैरवी करते हैं हम उन लोगों से अलग देख लें जो उलटे पाव फिरते हैं अगरचे ये उलट फेर सिवा उन लोगों के जिन की ख़ुदा ने हिदायत की है सब पर शाक़ ज़रुर है और ख़ुदा ऐसा नहीं है कि तुम्हारे ईमान नमाज़ को जो बैतुलमुक़द्दस की तरफ पढ़ चुके हो बरबाद कर दे बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा ही रफ़ीक व मेहरबान है (143)
कद् नरा तक़ल्लु-ब वज्हि-क फ़िस्समा-इ फ़-ल-नुवल्लियन्न-क किब्लतन् तर्जा़हा फ़-वल्लि वज्ह-क शत्रल-मस्जिदिल्-हरामि , व हैसु मा कुन्तुम् फ़-वल्लू वुजू-हकुम् शतरहू , व इन्नल्लज़ी-न ऊतुल्किता-ब ल-यअ्लमू-न अन्नहुल-हक्कु मिरब्बिहिम , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा यअ्मलून (144)
ऐ रसूल क़िबला बदलने के वास्ते बेशक तुम्हारा बार बार आसमान की तरफ मुँह करना हम देख रहे हैं तो हम ज़रुर तुम को ऐसे क़िबले की तरफ फेर देगें कि तुम निहाल हो जाओ अच्छा तो नमाज़ ही में तुम मस्ज़िदे मोहतरम काबे की तरफ मुँह कर लो और ऐ मुसलमानों तुम जहाँ कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मुँह कर लिया करो और जिन लोगों को किताब तौरेत वगैरह दी गयी है वह बखूबी जानते हैं कि ये तबदील क़िबले बहुत बजा व दुरुस्त है और उस के परवरदिगार की तरफ़ से है और जो कुछ वह लोग करते हैं उस से ख़ुदा बेख़बर नही (144)
व लइन् अतै तल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब बिकुल्लि आ-यतिम्मा तबिअू किब्ल-त-क वमा अन्-त बिता-बिअिन् किब्ल-तहुम् वमा बअ्जुहुम् बिताबिअि़न् किब्ल-त बअ्ज़िन , व ल-इनित्तबअ्-त अहवा-अहुम् मिम्-बअदि मा जाअ-क मिनल्-अिल्मि इन्न क इज़ल् लमिनज्जालिमीन •(145)
और अगर अहले किताब के सामने दुनिया की सारी दलीले पेश कर दोगे तो भी वह तुम्हारे क़िबले को न मानेंगें और न तुम ही उनके क़िबले को मानने वाले हो और खुद अहले किताब भी एक दूसरे के क़िबले को नहीं मानते और जो इल्म कुरान तुम्हारे पास आ चुका है उसके बाद भी अगर तुम उनकी ख्वाहिश पर चले तो अलबत्ता तुम नाफ़रमान हो जाओगे (145)
अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यअ्रिफूनहू कमा यअरिफू-न अब्ना-अहुम , व इन्-न फ़रीकम्-मिन्हुम् ल-यक्तुमूनल-हक्क व हुम् यअ्लमून (146)
जिन लोगों को हमने किताब ( तौरैत वगैरह ) दी है वह जिस तरह अपने बेटों को पहचानते है उसी तरह तरह वह उस पैग़म्बर को भी पहचानते हैं और उन में कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो दीदए व दानिस्ता ( जान बुझकर ) हक़ बात को छिपाते हैं (146)
अल्हक्कु मिर्रब्बि-क फला तकूनन्-न मिनल-मुम्तरीन (147)*
ऐ रसूल तबदीले क़िबला तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ है पस तुम कहीं शक करने वालों में से न हो जाना (147)
व लिकुल्लिव्विज्हतुन हु-व मुवल्लीहा फ़स्तबिकुल-खैराति , ऐ-न मा तकूनू यअ्ति बिकुमुल्लाहु जमीअ़न् , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (148)
और हर फरीक़ के वास्ते एक सिम्त है उसी की तरफ वह नमाज़ में अपना मुँह कर लेता है पस तुम ऐ मुसलमानों झगड़े को छोड़ दो और नेकियों मे उन से लपक के आगे बढ़ जाओ तुम जहाँ कहीं होगे ख़ुदा तुम सबको अपनी तरफ ले आऐगा बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (148)
व मिन् हैसु ख़रज्-त फ़-वल्लि वज्ह-क शत्रल मस्जिदिल्-हरामि , व इन्नहू लल्हक्कु मिर्रब्बि-क , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (149)
और ( ऐ रसूल ) तुम जहाँ से जाओ ( यहाँ तक मक्का से ) तो भी नमाज़ मे तुम अपना मुँह मस्ज़िदे मोहतरम ( काबा ) की तरफ़ कर लिया करो और बेशक ये नया क़िबला तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ है (149)
व मिन् हैसु ख़रज्-त फ़-वल्लि वज्ह-क शत्रल् मस्जिदिल्-हरामि , व हैसु मा कुन्तुम् फ़-वल्लू वुजूहकुम् शत्रहू लिअल्ला यकू-न लिन्नासि अलैकुम् , हुज्जतुन् , इल्लल्लज़ी-न ज़-लमू मिन्हुम् फला तख़शौहुम् वख़्शौनी , व लि-उतिम्-म निअ्मती अलैकुम् व लअल्लकुम् तह्तदून (150)
और तुम्हारे कामों से ख़ुदा ग़ाफिल नही है और ( ऐ रसूल ) तुम जहाँ से जाओ ( यहाँ तक के मक्का से तो भी ) तुम ( नमाज़ में ) अपना मुँह मस्ज़िदे हराम की तरफ कर लिया करो और ( ऐ रसूल ) तुम जहाँ कही हुआ करो तो नमाज़ में अपना मुँह उसी काबा की तरफ़ कर लिया करो ( बार बार हुक्म देने का एक फायदा ये है ताकि लोगों का इल्ज़ाम तुम पर न आने पाए मगर उन में से जो लोग नाहक़ हठधर्मी करते हैं वह तो ज़रुर इल्ज़ाम देगें ) तो तुम लोग उनसे डरो नहीं और सिर्फ़ मुझसे डरो और (दूसरा फ़ायदा ये है) ताकि तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दूं (150)
कमा अर्-सल्ना फीकुम् रसूलम्-मिन्कुम् यत्लू अलैकुम् आयातिना व युज़क्कीकुम् व युअ़ल्लिमुकुमुल-किता-ब वल्हिक्म-त व युअल्लिमुकुम् मा लम् तकूनू तअ्लमून (151)
और तीसरा फायदा ये है ताकि तुम हिदायत पाओ मुसलमानों ये एहसान भी वैसा ही है जैसे हम ने तुम में तुम ही में का एक रसूल भेजा जो तुमको हमारी आयतें पढ़ कर सुनाए और तुम्हारे नफ्स को पाकीज़ा करे और तुम्हें किताब कुरान और अक्ल की बातें सिखाए और तुम को वह बातें बताए जिन की तुम्हें पहले से खबर भी न थी (151)
फज्कुरूनी अज्कुर्कुम् वश्कुरूली वला तक्फुरून (152)*
पस तुम हमारी याद रखो तो मै भी तुम्हारा ज़िक्र ( खैर ) किया करुगाँ और मेरा शुक्रिया अदा करते रहो और नाशुक्री न करो (152)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुस्तअी़नू बिस्सब्रि वस्सलाति , इन्नल्ला-ह मअ़स्साबिरीन (153)
ऐ ईमानदारों मुसीबत के वक्त सब्र और नमाज़ के ज़रिए से ख़ुदा की मदद माँगों बेशक ख़ुदा सब्र करने वालों ही का साथी है (153)
वला तकूलू लिमंय्युक्त़लु फ़ी सबीलिल्लाहि अम्वातुन् , बल् अह्याउंव् वला-किल्ला तश्अुरून (154)
और जो लोग ख़ुदा की राह में मारे गए उन्हें कभी मुर्दा न कहना बल्कि वह लोग ज़िन्दा हैं मगर तुम उनकी ज़िन्दगी की हक़ीकत का कुछ भी शऊर नहीं रखते (154)
व ल-नब्लु वन्नकुम् बिशैइम् मिनल्खौफि वल्जूअि़ व नक्सिम् मिनल अम्वालि वल्-अन्फुसि वस्स-मराति , व बश्शिरिस्साबिरीन (155)
और हम तुम्हें कुछ खौफ़ और भूख से और मालों और जानों और फलों की कमी से ज़रुर आज़माएगें और ( ऐ रसूल ) ऐसे सब्र करने वालों को ख़ुशख़बरी दे दो (155)
अल्लज़ी-न इज़ा असाबतहुम् मुसीबतुन् कालू इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिअून (156)
कि जब उन पर कोई मुसीबत आ पड़ी तो वह ( बेसाख्ता ) बोल उठे हम तो ख़ुदा ही के हैं और हम उसी की तरफ लौट कर जाने वाले हैं (156)
उलाइ-क अलैहिम सलवातुम् मिर्रब्बिहिम् व रहमतुन् , व उलाइ-क हुमुल्-मुह्तदून (157)
उन्हीं लोगों पर उनके परवरदिगार की तरफ से इनायतें हैं और रहमत और यही लोग हिदायत याफ्ता है (157)
इन्नस्सफा वल्मर्व-त मिन् शआ-इरिल्लाहि फ़-मन् हज्जल्बै-त अविअ्त-म-र फ़ला जुना-ह अलैहि अंय्यत्तव्व-फ़ बिहिमा , व मन् त-तव्व-अ खैरन् फ़-इन्नल्ला-ह शाकिरून् अलीम (158)
बेशक ( कोहे ) सफ़ा और ( कोह ) मरवा ख़ुदा की निशानियों में से हैं पस जो शख्स ख़ानए काबा का हज या उमरा करे उस पर उन दोनो के ( दरमियान ) तवाफ़ ( आमद ओ रफ्त ) करने में कुछ गुनाह नहीं ( बल्कि सवाब है ) और जो शख्स खुश खुश नेक काम करे तो फिर ख़ुदा भी क़दरदाँ ( और ) वाक़िफ़कार है (158)
इन्नल्लजी-न यक़्तुमू-न मा अन्जल्ना मिनल् बय्यिनाति वल्हुदा मिम्-बअदि मा बय्यन्नाहु लिन्नासि फिल्-किताबि उलाइ-क यल् अनुहुमुल्लाहु व यल् अनुहुमुल्-लाअिनून (159)
बेशक जो लोग हमारी इन रौशन दलीलों और हिदायतों को जिन्हें हमने नाज़िल किया उसके बाद छिपाते हैं जबकि हम किताब तौरैत में लोगों के सामने साफ़ साफ़ बयान कर चुके हैं तो यही लोग हैं जिन पर ख़ुदा भी लानत करता है और लानत करने वाले भी लानत करते हैं (159)
इल्लल्लज़ी-न ताबू व अस्लहू व बय्यनू फ़-उलाइ-क अतूबु अलैहिम् व अ-नत्तव्वाबुर्रहीम (160)
मगर जिन लोगों ने ( हक़ छिपाने से ) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर ली और जो किताबे ख़ुदा में है साफ़ साफ़ बयान कर दिया पस उन की तौबा मै कुबूल करता हूँ और मै तो बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान हूँ (160)
इन्नल्लज़ी-न क-फरू व मातू व हुम् कुफ्फारून् उलाइ-क अलैहिम् लअ्-नतुल्लाहि वल् मलाइ-कति वन्नासि अज्मअी़न (161)
बेशक जिन लोगों में कुफ्र एख्तेयार किया और कुफ्र ही की हालत में मर गए उन्ही पर ख़ुदा की और फरिश्तों की और तमाम लोगों की लानत है हमेशा उसी फटकार में रहेंगे (161)
ख़ालिदी-न फ़ीहा ला युख्फ्फु अन्हुमुल्-अज़ाबु व ला हुम् युन्ज़रून (162)
न तो उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ ( कमी ) की जाएगी (162)
व इलाहुकुम् इलाहुंव-वाहिदुन् ला इला-ह इल्ला हुवर्रह्मानुर्रहीम (163)*
और न उनको अज़ाब से मोहलत दी जाएगी और तुम्हारा माबूद तो वही यकता ख़ुदा है उस के सिवा कोई माबूद नहीं जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है (163)
इन्-न फ़ी ख़ल्किस्समावाति वलअर्ज़ि वख्तिलाफ़िल्लैलि वन्नहारि वल्फु़ल्किल्लती तजरी फ़िल्बहरि बिमा यन्फअुन्ना-स व मा अन्ज़लल्लाहु मिनस्समा-इ मिम्मा-इन् फ़-अह्या बिहिल् अर्-ज़ बअ्-द मौतिहा व बस्-स फ़ीहा मिन् कुल्लि दाब्बतिन् व तसरीफ़िर्रियाहि वस्सहाबिल मुसख्खरि बैनस्समा-इ वल् अर्जि लआयातिल लिकौमिंय्यअकिलून (164)
बेशक आसमान व ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के रद्दो बदल में और क़श्तियों जहाज़ों में जो लोगों के नफे की चीज़े ( माले तिजारत वगैरह दरिया ) में ले कर चलते हैं और पानी में जो ख़ुदा ने आसमान से बरसाया फिर उस से ज़मीन को मुर्दा ( बेकार ) होने के बाद जिला दिया ( शादाब कर दिया ) और उस में हर क़िस्म के जानवर फैला दिये और हवाओं के चलाने में और अब्र में जो आसमान व ज़मीन के दरमियान ख़ुदा के हुक्म से घिरा रहता है इन सब बातों में अक्ल वालों के लिए बड़ी बड़ी निशानियाँ हैं (164)
व मिनन्नासि मंय्यत्तख़िजु मिन् दूनिल्लाहि अन्दादंय्युहिब्बू-नहुम् कहुब्बिल्लाहि , वल्लज़ी-न आमनू अशद्दू हुब्बल-लिल्लाहि , व लौ यरल्लज़ी-न ज़-लमू इज् यरौनल-अज़ा-ब अन्नल-कुव्व-त लिल्लाहि जमीअंव व अन्नल्ला-ह शदीदुल् अ़ज़ाब (165)
और बाज़ लोग ऐसे भी हैं जो ख़ुदा के सिवा औरों को भी ख़ुदा का मिसल व शरीक बनाते हैं ( और ) जैसी मोहब्बत ख़ुदा से रखनी चाहिए वैसी ही उन से रखते हैं और जो लोग ईमानदार हैं वह उन से कहीं बढ़ कर ख़ुदा की उलफ़त रखते हैं और काश ज़ालिमों को ( इस वक्त ) वह बात सूझती जो अज़ाब देखने के बाद सूझेगी कि यक़ीनन हर तरह की कूवत ख़ुदा ही को है और ये कि बेशक ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब वाला है (165)
इज् त-बर्र अल्लज़ीनत्तु बिअ़ू मिनल्लज़ीनत् त-बअू व र-अवुल अज़ा-ब व त कत्तअत् बिहिमुल अस्बाब (166)
( वह क्या सख्त वक्त होगा ) जब पेशवा लोग अपने पैरवो से अपना पीछा छुड़ाएगे और ( ब चश्में ख़ुद ) अज़ाब को देखेगें और उनके बाहमी ताल्लुक़ात टूट जाएँगे (166)
व कालल्लज़ीनत्त-बअू लौ अन्-न लना कर्रतन् फ़-न-तबर्र-अ मिन्हुम् कमा तबर्रअू मिन्ना , कज़ालि-क युरीहिमुल्लाहु अअ्मालहुम् ह-सरातिन् अलैहिम् , व मा हुम् बिख़ारिजी-न मिनन्नार (167)*
और पैरव कहने लगेंगे कि अगर हमें कहीं फिर ( दुनिया में ) पलटना मिले तो हम भी उन से इसी तरह अलग हो जायेंगे जिस तरह ऐन वक्त पर ये लोग हम से अलग हो गए यूँ ही ख़ुदा उन के आमाल को दिखाएगा जो उन्हें ( सर तापा पास ही ) पास दिखाई देंगें और फिर भला । कब वह दोज़ख़ से निकल सकतें हैं (167)
या अय्युहन्नासु कुलू मिम्मा फिल् अर्ज़ि हलालन् तय्यिबंव-वला तत्तबिअू खुतुवातिश्शैतानि , इन्नहू लकुम् अदुव्वुम् मुबीन (168)
ऐ लोगों जो कुछ ज़मीन में हैं उस में से हलाल व पाकीज़ा चीज़ ( शौक़ से ) खाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो वह तो तुम्हारा ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है (168)
इन्नमा यअ्मुरूकुम् बिस्सू-इ वल्-फहशा-इ व अन् तकूलू अलल्लाहि मा ला तअ्लमून (169)
वह तो तुम्हें बुराई और बदकारी ही का हुक्म करेगा और ये चाहेगा कि तुम बे जाने बूझे ख़ुदा पर बोहतान बाँधों (169)
व इज़ा की-ल लहुमुत्तबिअू मा अन्ज़लल्लाहु कालू बल् नत्तबिअु़ मा अल्फ़ैना अलैहि आबा-अना , अ-व लौ का-न आबाअुहुम् ला यअ्किलू-न शैअंव व ला यह्तदून (170)
और जब उन से कहा जाता है कि जो हुक्म ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुआ है उस को मानो तो कहते हैं कि नहीं बल्कि हम तो उसी तरीक़े पर चलेंगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया अगरचे उन के बाप दादा कुछ भी न समझते हों और न राहे रास्त ही पर चलते रहे (170)
व म-सलुल्लज़ी-न क-फरू क-म-सलिल्लज़ी यन्अिकु बिमा ला यस्मअु इल्ला दुआअंव व निदाअन् , सुम्मुम् बुक्मुन् अुम्युन् फहुम् ला यअ्किलून (171)
और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उन की मिसाल तो उस शख्स की मिसाल है जो ऐसे जानवर को पुकार के अपना हलक़ फाड़े जो आवाज़ और पुकार के सिवा सुनता ( समझता ख़ाक ) न हो ये लोग बहरे गूंगे अन्धे हैं कि ख़ाक नहीं समझते (171)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुलू मिन् तय्यिबाति मा रज़क़्नाकुम् वश्कुरू लिल्लाहि इन् कुन्तुम् इय्याहु तअ्बुदून (172)
ऐ ईमानदारों जो कुछ हम ने तुम्हें दिया है उस में से सुथरी चीजें ( शौक़ से ) खाओं और अगर ख़ुदा ही की इबादत करते हो तो उसी का शुक्र करो (172)
इन्नमा हर्र-म अलैकुमुल-मै-त-त वद्द-म व लह्मल खिन्ज़ीरि व मा उहिल्-ल बिही लिगैरिल्लाहि फ़-मनिज्तुर्-र गै-र बागिंव व ला आदिन् फला इस्-म अलैहि , इन्नल्ला-ह गफूर्रहीम (173)
उसने तो तुम पर बस मुर्दा जानवर और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर ज़बह के वक्त ख़ुदा के सिवा और किसी का नाम लिया गया हो हराम किया है पस जो शख्स मजबूर हो और सरकशी करने वाला और ज्यादती करने वाला न हो ( और उनमे से कोई चीज़ खा ले ) तो उसपर गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (173)
इन्नल्लज़ी-न यक़्तुमू-न मा अन्जलल्लाहु मिनल्-किताबि व यश्तरू-न बिहि स-मनन् कलीलन् उलाइ-क मा यअ्कुलू-न फ़ी बुतूनिहिम् इल्लन्ना-र व ला युकल्लिमुहुमुल्लाहु यौमल कियामति व ला युज़क्कीहिम व लहुम् अज़ाबुन अलीम (174)
बेशक जो लोग इन बातों को जो ख़ुदा ने किताब में नाज़िल की है छिपाते हैं और उसके बदले थोड़ी सी क़ीमत ( दुनयावी नफ़ा ) ले लेतें है ये लोग बस अंगारों से अपने पेट भरते हैं और क़यामत के दिन ख़ुदा उन से बात तक तो करेगा नहीं और न उन्हें ( गुनाहों से ) पाक करेगा और उन्हीं के लिए दर्दनाक अज़ाब है (174)
उला-इकल्लज़ीनश्त-र वुज् जलाल-त बिल्हुदा वल-अज़ा-ब बिल् मग्फि-रति फमा अस्ब-रहुम् अलन्नार (175)
. यही लोग वह हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही मोल ली और बख्यिय ( खुदा ) के बदले अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग के क्योंकर बरदाश्त करेंगे (175)
जालि-क बिअन्नल्ला-ह नज्जलल्-किता-ब बिल्हक्कि , व इन्नल्लज़ीनख़्त-लफू फ़िल्-किताबि लफ़ी शिकाकिम्-बअीद • (176)*
ये इसलिए कि ख़ुदा ने बरहक़ किताब नाज़िल की और बेशक जिन लोगों ने किताबे ख़ुदा में रद्दो बदल की वह लोग बड़े पल्ले दरजे की मुखालफत में हैं (176)
लैसल्बिर्-र अन् तुवल्लू वुजू-हकुम् कि-बलल्-मशरिकि वल्-मग्रिबि व लाकिन्नल्-बिर्-र मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल् आखिरि वल्मलाइ-कति वल्किताबि वन्नबिय्यी-न व आतल्मा-ल अला हुब्बिही ज़विल्कुरबा वल्यतामा वल्मसाकी-न वब्नस्सबीलि वस्सा-इली-न व फिर्रिकाबि , व अक़ामस्सला-त व आतज्ज़का-त वल्मूफू-न बि-अहदिहिम इज़ा आ-हदू वस्साबिरी-न फिल्-बअ्सा-इ वज़्ज़र्रा-इ व हीनल्-बअ्सि , उलाइ-कल्लज़ी-न स-दकू , व उलाइ-क हुमुल्-मुत्तकून (177)
नेकी कुछ यही थोड़ी है कि नमाज़ में अपने मुँह पूरब या पश्चिम की तरफ़ कर लो बल्कि नेकी तो उसकी है जो ख़ुदा और रोज़े आख़िरत और फ़रिश्तों और ख़ुदा की किताबों और पैग़म्बरों पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त में अपना माल क़राबत दारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों और माँगने वालों और लौन्डी गुलाम ( के गुलू खलासी ) में सर्फ करे और पाबन्दी से नमाज़ पढे और ज़कात देता रहे और जब कोई एहद किया तो अपने क़ौल के पूरे हो और फ़क्र व फाक़ा रन्ज और घुटन के वक्त साबित क़दम रहे यही लोग वह हैं जो दावए ईमान में सच्चे निकले और यही लोग परहेज़गार है (177)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुति-ब अलैकुमुल्-किसासु फ़िल्कत्ला , अल्हुर्रू बिल्हुर्रि वल्अ़ब्दु बिल्अ़ब्दि वल्-उन्सा बिल्-उन्सा , फ़-मन् अुफ़ि-य लहू मिन् अख़ीहि शैउन् फ़त्तिबाअुम् बिल्मअ्रूफि व अदाउन् इलैहि बि-इहसानिन् , ज़ालि-क तख्फीफुम् मिर्रब्बिकुम् व रहमतुन् , फ़-मनिअ्तदा बअ्-द ज़ालि-क फ़-लहू अ़ज़ाबुन अलीम (178)
ऐ मोमिनों जो लोग ( नाहक़ ) मार डाले जाएँ उनके बदले में तम को जान के बदले जान लेने का हुक्म दिया जाता है आज़ाद के बदले आज़ाद और गुलाम के बदले गुलाम और औरत के बदले औरत पस जिस ( क़ातिल ) को उसके ईमानी भाई तालिबे केसास की तरफ से कुछ माफ़ कर दिया जाये तो उसे भी उसके क़दम ब क़दम नेकी करना और ख़ुश मआमलती से ( खून बहा ) अदा कर देना चाहिए ये तुम्हारे परवरदिगार की तरफ आसानी और मेहरबानी है फिर उसके बाद जो ज्यादती करे तो उस के लिए दर्दनाक अज़ाब है (178)
व लकुम् फिल्क़िसासि हयातुंय्या उलिल्-अल्बाबि लअल्लकुम तत्तकून (179)
और ऐ अक़लमनदों क़सास ( के क़वाएद मुक़र्रर कर देने ) में तुम्हारी ज़िन्दगी है ( और इसीलिए जारी किया गया है ताकि तुम खूरेज़ी से ) परहेज़ करो (179)
कुति-ब अलैकुम् इज़ा ह-ज़-र अ-ह-दकुमुल्मौतु इन् त-र-क खै-रनिल वसिय्यतु लिल्वालिदैनि वल-अक़्रबी-न बिल्मअ्रूफि हक़्कन अलल्-मुत्तक़ीन (180)
( मुसलमानों ) तुम को हुक्म दिया जाता है कि जब तुम में से किसी के सामने मौत आ खड़ी हो बशर्ते कि वह कुछ माल छोड़ जाएं तो माँ बाप और क़राबतदारों के लिए अच्छी वसीयत करें जो ख़ुदा से डरते हैं उन पर ये एक हक़ है (180)
फ़-मम् बद्-द लहू बअ्-द मा समि-अहू फ़-इन्नमा इस्मुहू अलल्लज़ी-न युबद्दिलूनहू , इन्नल्ला-ह समीअुन अलीम (181)
फिर जो सुन चुका उसके बाद उसे कुछ का कुछ कर दे तो उस का गुनाह उन्हीं लोगों की गरदन पर है जो उसे बदल डालें बेशक ख़ुदा सब कुछ जानता और सुनता (181)
फ़-मन् खा-फ़ मिम्-मूसिन् ज-नफ़न् औ इस्मन् फ़-अस्ल-ह बैनहुम् फला इस-म अलैहि , इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (182)*
( हाँ अलबत्ता ) जो शख्स वसीयत करने वाले से बेजा तरफ़दारी या बे इन्साफी का ख़ौफ रखता है और उन वारिसों में सुलह करा दे तो उस पर बदलने का कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (182)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुति-ब अलैकुमुस्-सियामु कमा कुति-ब अलल्लज़ी-न मिन् कब्लिकुम् लअल्लकुम् तत्तकून (183)
ऐ ईमानदारों रोज़ा रखना जिस तरह तुम से पहले के लोगों पर फर्ज था उसी तरफ तुम पर भी फर्ज़ किया गया ताकि तुम उस की वजह से बहुत से गुनाहों से बचो (183)
अय्यामम्-मअदूदातिन् , फ़-मन् का-न मिन्कुम् मरीज़न् औ अला स-फ़रिन् फ-अिद्दतुम मिन् अय्यामिन् उ-ख-र , व अलल्लज़ी-न युतीकूनहू फ़िदयतुन् तआमु मिस्कीनिन् , फ़-मन् त-तव्व-अ खैरन फहु-व खैरूल्लहू , व अन् तसूमू खैरूल्लकुम् इन् कुन्तुम् तअ्लमून (184)
( वह भी हमेशा नहीं बल्कि ) गिनती के चन्द रोज़ इस पर भी ( रोज़े के दिनों में ) जो शख्स तुम में से बीमार हो या सफर में हो तो और दिनों में जितने क़ज़ा हुए हो ) गिन के रख ले और जिन्हें रोज़ा रखने की कूवत है और न रखें तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना खिला देना है और जो शख्स अपनी ख़ुशी से भलाई करे तो ये उस के लिए ज्यादा बेहतर है और अगर तुम समझदार हो तो ( समझ लो कि फिदये से ) रोज़ा रखना तुम्हारे हक़ में बहरहाल अच्छा है (184)
शहरू र-मज़ानल्लज़ी उन्ज़ि-ल फ़ीहिल्कुरआनु हुदल्लिन्नासि व बय्यिनातिम्-मिनल्हुदा वल्फुरकानि फ़-मन् शहि-द मिन्कुमुश्शह्-र फ़ल्यसुम्हु , व मन् का-न मरीज़न औ अला स-फ़रिन् फ़अिद्दतुम् मिन् अय्यामिन उ-ख-र , युरीदुल्लाहु बिकुमुल युस्-र व ला युरीदु बिकुमुल् अुस्-र व लितुक्मिलुल अिद्द-त व लितुकब्बिरूल्ला-ह अला मा हदाकुम् व लअल्लकुम् तश्कुरून (185)
( रोज़ों का ) महीना रमज़ान है जिस में कुरान नाज़िल किया गया जो लोगों का रहनुमा है और उसमें रहनुमाई और ( हक़ व बातिल के ) तमीज़ की रौशन निशानियाँ हैं ( मुसलमानों ) तुम में से जो शख्स इस महीने में अपनी जगह पर हो तो उसको चाहिए कि रोज़ा रखे और जो शख्स बीमार हो या फिर सफ़र में हो तो और दिनों में रोज़े की गिनती पूरी करे ख़ुदा तुम्हारे साथ आसानी करना चाहता है और तुम्हारे साथ सख्ती करनी नहीं चाहता और ( शुमार का हुक्म इस लिए दिया है ) । ताकि तुम ( रोज़ो की ) गिनती पूरी करो और ताकि ख़ुदा ने जो तुम को राह पर लगा दिया है उस नेअमत पर उस की बड़ाई करो और ताकि तुम शुक्र गुज़ार बनो (185)
व इज़ा स-अ-ल-क अिबादी अन्नी फ़-इन्नी क़रीबुन् , उजीबु दअ्-वतद्दाअि इज़ा दआ़नि फ़ल्यस्तजीबू ली वल्युअमिनू बी लअल्लहुम् यरशुदून (186)
( ऐ रसूल ) जब मेरे बन्दे मेरा हाल तुमसे पूछे तो ( कह दो कि ) मै उन के पास ही हूँ और जब मुझसे कोई दुआ माँगता है तो मै हर दुआ करने वालों की दुआ ( सुन लेता हूँ और जो मुनासिब हो तो ) कुबूल करता हूँ पस उन्हें चाहिए कि मेरा भी कहना माने ) और मुझ पर ईमान लाएँ (186)
उहिल-ल लकुम् लै-लतस्सियामिर्र-फसु इला निसा-इकुम , हुन्-न लिबासुल्लकुम् व अन्तुम् लिबासुल् – लहुन्-न अलिमल्लाहु अन्नकुम् कुन्तुम् तख़्तानू-न अन्फु-सकुम् फ़ता-ब अलैकुम् व अफ़ा अन्कुम् फल्आ-न बाशिरूहुन्-न वब्तगू मा क-तबल्लाहु लकुम् व कुलू वश्रबू हत्ता य-तबय्यन लकुमुल्खैतुल् अब्यजु़ मिनल्खैतिल् अस्वदि मिनल्-फ़ज्रि सुम्-म अतिम्मुस् सिया-म इलल्लैलि व ला तुबाशिरूहुन्-न व अन्तुम् आकिफू-न फिल्-मसाजिदि , तिल-क हुदूदुल्लाहि फ़ला तकरबूहा , कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु आयातिही लिन्नासि लअल्लहुम् यत्तकून (187)
ताकि वह सीधी राह पर आ जाए ( मुसलमानों ) तुम्हारे वास्ते रोज़ों की रातों में अपनी बीवियों के पास जाना हलाल कर दिया गया औरतें ( गोया ) तुम्हारी चोली हैं और तुम ( गोया उन के दामन हो ) ख़ुदा ने देखा कि तुम ( गुनाह ) करके अपना नुकसान करते ( कि आँख बचा के अपनी बीबी के पास चले जाते थे ) तो उसने तुम्हारी तौबा कुबूल की और तुम्हारी ख़ता से दर गुज़र किया पस तुम अब उनसे हम बिस्तरी करो और ( औलाद ) जो कुछ ख़ुदा ने तुम्हारे लिए ( तक़दीर में ) लिख दिया है उसे माँगों और खाओ और पियो यहाँ तक कि सुबह की सफेद धारी ( रात की ) काली धारी से आसमान पर पूरब की तरफ़ तक तुम्हें साफ नज़र आने लगे फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और हाँ जब तुम मस्जिदों में एतेकाफ़ करने बैठो तो उन से ( रात को भी ) हम बिस्तरी न करो ये ख़ुदा की ( मुअय्युन की हुई ) हदे हैं तो तुम उनके पास भी न जाना यूँ खुल्लम खुल्ला ख़ुदा अपने एहकाम लोगों के सामने बयान करता है ताकि वह लोग ( नाफ़रमानी से ) बचें (187)
व ला तअकुलू अम्वा-लकुम् बैनकुम् बिल्बातिलि व तुद् लू बिहा इलल्-हुक्कामि लितअ्कुलू फरीकम् मिन् अम्वालिन्नासि बिल्इस्मि व अन्तुम् तअ्लमून (188)*
और आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ न खाओ और न माल को ( रिश्वत में ) हुक्काम के यहाँ झोंक दो ताकि लोगों के माल में से ( जो ) कुछ हाथ लगे नाहक़ खुर्द बुर्द कर जाओ हालाकि तुम जानते हो (188)
यस्अलून-क अनिल-अहिल्लति , कुल हि-य मवाकीतु लिन्नासि वल्-हज्जि , व लैसल्बिर्रू बि-अन्तअ्तुल-बुयू-त मिन् जुहूरिहा व ला किन्नल्बिर्-र मनित्तका वअ्तुल्-बुयू-त मिन् अब्वाबिहा वत्तकुल्ला-ह लअल्लकुम्तु फ़्लिहून (189)
( ऐ रसूल ) तुम से लोग चाँद के बारे में पूछते हैं ( कि क्यो घटता बढ़ता है ) तुम कह दो कि उससे लोगों के ( दुनयावी ) अम्र और हज के अवक़ात मालम होते है और ये कोई भली बात नही है कि घरो में पिछवाड़े से फाँद के ) आओ बल्कि नेकी उसकी है जो परहेज़गारी करे और घरों में आना हो तो ) उनके दरवाजों की तरफ से आओ और ख़ुदा से डरते रहो ताकि तुम मुराद को पहुँचो (189)
व कातिलू फी सबीलिल्लाहिल्लज़ी-न युक़ातिलू-नकुम् व ला तअ्तदू , इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल – मुअ्तदीन (190)
और जो लोग तुम से लड़े तुम ( भी ) ख़ुदा की राह में उनसे लड़ो और ज्यादती न करो ( क्योंकि ) ख़ुदा ज्यादती करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता (190)
वक़्तुलूहुम् हैसू सकि़फ़्तुमूहुम् व अख्रिजूहुम मिन् हैसु अख्रजूकुम वल्फ़ित्नतु अशद्दु मिनल्-क़त्लि व ला तुकातिलूहुम् अिन्दल-मस्जिदिल्-हरामि हत्ता युकातिलूकुम फ़ीहि , फ़-इन् का तलूकुम् फ़क़्तुलूहुम् , कज़ालि-क जजा़उल-काफिरीन (191)
और तुम उन ( मुशरिकों ) को जहाँ पाओ मार ही डालो और उन लोगों ने जहाँ ( मक्का ) से तुम्हें शहर बदर किया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर करो और फितना परदाज़ी ( शिर्क ) लूँरेज़ी से भी बढ़ के है और जब तक वह लोग कुफ्फ़ार मस्ज़िद हराम ( काबा ) के पास तुम से न लडे तुम भी उन से उस जगह न लड़ों पस अगर वह तुम से लड़े तो बेखटके तुम भी उन को क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है (191)
फ-इनिन्-तहौ फ़-इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (192)
फिर अगर वह लोग बाज़ रहें तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (192)
व कातिलूहुम् हत्ता ला तकू-न फ़ित्नतुंव व यकूनद्दीनु लिल्लाहि , फ-इनिन्-तहौ फला अुद्वा-न इल्ला अलज़्-ज़ालिमीन (193)
और उन से लड़े जाओ यहाँ तक कि फ़साद बाक़ी न रहे और सिर्फ ख़ुदा ही का दीन रह जाए फिर अगर वह लोग बाज़ रहे तो उन पर ज्यादती न करो क्योंकि ज़ालिमों के सिवा किसी पर ज्यादती ( अच्छी ) नहीं (193)
अश्शहरूल्-हरामु बिश्शह्रिल्-हरामि वल्-हुरूमातु किसासुन् , फ़-मनिअ्तदा अलैकुम् फअ्तदू अलैहि बिमिस्लि मअ्तदा अलैकुम् वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह म-अल्मुत्तक़ीन (194)
हुरमत वाला महीना हुरमत वाले महीने के बराबर है ( और कुछ महीने की खुसूसियत नहीं ) सब हुरमत वाली चीजे एक दूसरे के बराबर हैं पस जो शख्स तुम पर ज्यादती करे तो जैसी ज्यादती उसने तुम पर की है वैसी ही ज्यादती तुम भी उस पर करो और ख़ुदा से डरते रहो और खूब समझ लो कि ख़ुदा परहेज़गारों का साथी है (194)
व अन्फ़िकू फ़ी सबीलिल्लाहि व ला तुल्कू बिऐदीकुम् इलत्तह्लु-कति , व अह्-सिनू इन्नल्ला-ह युहिब्बुल-मुहसिनीन (195)
और ख़ुदा की राह में ख़र्च करो और अपने हाथ जान हलाकत मे न डालो और नेकी करो बेशक ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता है (195)
व अतिम्मुल्-हज्-ज वल्-अुमर-त लिल्लाहि , फ़-इन् उहसिरतुम् फ़-मस्तै-स-र मिनल-हदयि व ला तहलिकू़ रूऊ-सकुम् हत्ता यब्लुगल-हदयु महिल्लहू फ़-मन् का-न मिन्कुम् मरीज़न औ बिही अज़म्-मिर्रअ्सिही फ़-फिदयतुम्-मिन् सियामिन् औ स-द-क़तिन् औ नुसुकिन् फ़-इज़ा अमिन्तुम फ़-मन् तमत्त-अ बिल्-उम्रति इलल-हज्जि फ़-मस्तै-स-र मिनल-हद्-यि फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु सलासति अय्यामिन् फिल्-हज्जि व सब्-अतिन् इज़ा रजअ्तुम , तिल-क अ-श-रतुन् कामि-लतुन् , ज़ालि-क लिमल्-लम् यकुन् अहलुहू हाज़िरिल्-मस्जिदिल हरामि , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल-अिकाब (196)*
और सिर्फ ख़ुदा ही के वास्ते हज और उमरा को पूरा करो अगर तुम बीमारी वगैरह की वजह से मजबूर हो जाओ तो फिर जैसी कुरबानी मयस्सर आये ( कर दो ) और जब तक कुरबानी अपनी जगह पर न पहुँच जाये अपने सर न मुंडवाओ फिर जब तुम में से कोई बीमार हो या उसके सर में कोई तकलीफ हो तो ( सर मुंडवाने का बदला ) रोजे या खैरात या कुरबानी है पस जब मुतमइन रहों तो जो शख्स हज तमत्तो का उमरा करे तो उसको जो कुरबानी मयस्सर आये करनी होगी और जिस से कुरबानी ना मुमकिन हो तो तीन रोजे ज़माना ए हज में ( रखने होंगे ) और सात रोजे ज़ब तुम वापस आओ ये पूरा दहाई है ये हुक्म उस शख्स के वास्ते है जिस के लड़के बाले मस्ज़िदुल हराम ( मक्का ) के बाशिन्दे न हो और ख़ुदा से डरो और समझ लो कि ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब वाला है (196)
अल्हज्जु अश्हुरूम्-मअलूमातुन् फ-मन् फ़-र-ज़ फ़ीहिन्नल-हज़्-ज फला र-फ-स व ला फु-सू-क व ला जिदा-ल फ़िल्-हज्जि , व मा तफ्अलू मिन् खैरिय् यअ्लम्हुल्लाहु , व तज़व्वदू फ़-इन्-न खैरज्जादित्तक्वा वत्तकूनि या उलिल-अल्बाब (197)
हज के महीने तो ( अब सब को ) मालूम | हैं ( शव्वाल , जीक़ादा , जिलहज ) पस जो शख्स उन महीनों में अपने ऊपर हज लाज़िम करे तो ( एहराम से आख़िर हज तक ) न औरत के पास जाए न कोई और गुनाह करे और न झगडे और नेकी का कोई सा काम भी करों तो ख़ुदा उस को खूब जानता है और ( रास्ते के लिए ) ज़ाद राह मुहिय्या करो और सब मे बेहतर ज़ाद राह परहेज़गारी है और ऐ अक्लमन्दों मुझ से डरते रहो (197)
लै-स अलैकुम् जुनाहुन् अन् तब्तगू फज्लम्-मिर्रब्बिकुम , फ़-इज़ा अफज्तुम् मिन् अ-रफ़ातिन् फज्कुरूल्ला-ह अिन्दल-मश्अ़रिल् हरामि वज्कुरुहू कमा हदाकुम् व इन् कुन्तुम् मिन् कब्लिही ल-मिनज्जाल्लीन (198)
इस में कोई इल्ज़ाम नहीं है कि ( हज के साथ ) तुम अपने परवरदिगार के फज़ल ( नफ़ा तिजारत ) की ख्वाहिश करो और फिर जब तुम अरफात से चल खड़े हो तो मशअरुल हराम के पास ख़ुदा का जिक्र करो और उस की याद भी करो तो जिस तरह तुम्हे बताया है अगरचे तुम इसके पहले तो गुमराहो से थे (198)
सुम्-म अफ़ीजू मिन् हैसु अफ़ाज़न्नासु वस्तग् फिरूल्ला-ह , इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (199)
फिर जहाँ से लोग चल खड़े हों वहीं से तुम भी चल खड़े हो और उससे मग़फिरत की दुआ माँगों बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (199)
फ़-इज़ा क़जैतुम् मनासि-ककुम् फज्कुरूल्ला-ह क-ज़िक्रिकुम् आबा-अकुम् औ अशद्-द ज़िक्रन् , फ़-मिनन्नासि मंय्यकूलू रब्बना आतिना फ़िद्दुन्या व मा लहू फिल-आख़ि-रति मिन् ख़लाक़ (200)
फिर जब तुम अरक़ाने हज बजा ला चुको तो तुम इस तरह ज़िक्रे ख़ुदा करो जिस तरह तुम अपने बाप दादाओं का ज़िक्र करते हो बल्कि उससे बढ़ कर के फिर बाज़ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि ऐ मेरे परवरदिगार हमको जो ( देना है ) दुनिया ही में दे दे हालाकि ( फिर ) आख़िरत में उनका कुछ हिस्सा नहीं (200)
व मिन्हुम् मंय्यकूलु रब्बना आतिना फिद्दुन्या ह-स-नतंव व फ़िल्-आख़ि-रति ह-स-नतंव् व किना अज़ाबन्नार (201)
और बाज़ बन्दे ऐसे हैं कि जो दुआ करते हैं कि ऐ मेरे पालने वाले मुझे दुनिया में नेअमत दे | और आख़िरत में सवाब दे और दोज़ख़ की बाग से बचा (201)
उलाइ-क लहुम् नसीबुम् मिम्मा क-सबू , वल्लाहु सरीअुल हिसाब • (202)
यही वह लोग हैं जिनके लिए अपनी कमाई का हिस्सा चैन है (202)
वज्कुरूल्ला-ह फी अय्यामिम् मअदूदातिन् फ़-मन् त-अज्ज-ल फ़ी यौमैनि फला इस्-म अलैहि व मन् त-अख्ख-र फ़ला इस्-म अलैहि लि-मनित्तका , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नकुम् इलैहि तुह्शरून (203)
और ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है ( निस्फ़ ) और इन गिनती के चन्द दिनों तक ( तो ) ख़ुदा का ज़िक्र करो फिर जो शख्स जल्दी कर बैठे और ( मिना ) से और दो ही दिन में चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गुनाह नहीं है और जो ( तीसरे दिन तक ) ठहरा रहे उस पर भी कुछ गुनाह नही लेकिन यह रियायत उसके वास्ते है जो परहेज़गार हो , और खुदा से डरते रहो और यक़ीन जानो कि एक दिन तुम सब के सब उसकी तरफ क़ब्रों से उठाए जाओगे (203)
व मिनन्नासि मंय्युअ्जिबु-क क़ौलुहू फ़िल्हयातिद्दुन्या व युश्हिदुल्ला-ह अला मा फी कल्बिही व हु-व अलद्दुल्-ख़िसाम (204)
ऐ रसूल बाज़ लोग मुनाफिक़ीन से ऐसे भी हैं जिनकी चिकनी चुपड़ी बातें ( इस ज़रा सी ) दुनयावी ज़िन्दगी में तुम्हें बहुत भाती है और वह अपनी दिली मोहब्बत पर ख़ुदा को गवाह मुक़र्रर करते हैं हालॉकि वह तुम्हारे दुश्मनों में सबसे ज्यादा झगड़ालू हैं (204)
व इज़ा तवल्ला सआ़ फ़िल्अर्जि लियुफ्सि-द फ़ीहा व युहलिकल हर-स वन्-नस्-ल वल्लाहु ला युहिब्बुल फ़साद (205)
और जहाँ तुम्हारी मोहब्बत से मुँह फेरा तो इधर उधर दौड़ धूप करने लगा ताकि मुल्क में फ़साद फैलाए और ज़राअत ( खेती बाड़ी ) और मवेशी का सत्यानास करे और ख़ुदा फसाद को अच्छा नहीं समझता (205)
व इज़ा की-ल लहुत्तकिल्ला-ह अ-खज़त्हुल्-अिज्जतु बिल्-इस्मि फ़-हस्बुहू जहन्नमु , व लबिअ्सल्-मिहाद (206)
और जब कहा जाता है कि ख़ुदा से डरो तो उसे गुरुर गुनाह पर उभारता है बस ऐसे कम्बख्त के लिए जहन्नुम ही काफ़ी है और बहुत ही बुरा ठिकाना है (206)
व मिनन्नासि मंय्यशरी नफ़्सहुब्तिग़ा-अ मर्जातिल्लाहि , वल्लाहु रऊफुम् बिल-अिबाद (207)
और लोगों में से ख़ुदा के बन्दे कुछ ऐसे हैं जो ख़ुदा की ( ख़ुशनूदी ) हासिल करने की ग़रज़ से अपनी जान तक बेच डालते हैं और ख़ुदा ऐसे बन्दों पर बड़ा ही यफ्क्क़त वाला है (207)
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुद्ख़ुलू फिस्सिल्मि काफ्फ़तंव व ला तत्तबिअू खुतुवातिश्शैतानि , इन्नहू लकुम अदुव्वुम्-मुबीन (208)
ईमान वालों तुम सबके सब एक बार इस्लाम में ( पूरी तरह ) दाख़िल हो जाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो वह तुम्हारा यक़ीनी ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है (208)
फ़-इन् जलल्तुम मिम्-बअ्दि मा जा अत्कुमुल्-बय्यिनातु फअ्लमू अन्नल्ला-ह अजीजु़न् हकीम (209)
फिर जब तुम्हारे पास रौशन दलीले आ चुकी उसके बाद भी डगमगा गए तो अच्छी तरह समझ लो कि ख़ुदा ( हर तरह ) ग़ालिब और तदबीर वाला है (209)
हल यन्जुरू-न इल्ला अंय्यअति-यहुमुल्लाहु फ़ी जु-ल-लिम् मिनल् – गमामि वल्-मलाइ-कतु व कुज़ियल्-अम्रू , व इलल्लाहि तुरजअुल-उमूर (210)*
क्या वह लोग इसी के मुन्तज़िर हैं कि सफेद बादल के साय बानो की आड़ में अज़ाबे ख़ुदा और अज़ाब के फ़रिश्ते उन पर ही आ जाए और सब झगड़े चुक ही जाते हालॉकि आख़िर कुल उमुर ख़ुदा ही की तरफ रुजू किए जाएँगे (210)
सल् बनी इस्राई-ल कम् आतैनाहुम् मिन् आयतिम् बय्यि-नतिन् , व मंय्युबद्दिल नि-मतल्लाहि मिम्-बअदि मा जाअत् हु फ-इन्नल्ला-ह शदीदुल अिकाबि (211)
(ऐ रसूल) बनी इसराइल से पूछो कि हम ने उन को कैसी कैसी रौशन निशानियाँ दी और जब किसी शख्स के पास ख़ुदा की नेअमत (किताब) आ चुकी उस के बाद भी उस को बदल डाले तो बेशक़ ख़ुदा सख्त अज़ाब वाला है (211)
जुय्यि-न लिल्लज़ी-न क-फरूल् हयातुद्दुन्या व यस्ख़रू-न मिनल्लज़ी-न आमनू • वल्लज़ीनत्तको फौ-क हुम् यौमल-कियामति , वल्लाहु यर्जुकु मंय्यशा-उ बिगैरि हिसाब (212)
जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया उन के लिये दुनिया की ज़रा सी ज़िन्दगी ख़ूब अच्छी दिखायी गयी है और ईमानदारों से मसखरापन करते हैं हालॉकि क़यामत के दिन परहेज़गारों का दरजा उनसे (कहीं) बढ़ चढ़ के होगा और ख़ुदा जिस को चाहता है बे हिसाब रोज़ी अता फरमाता है (212)
कानन्नासु उम्म-तंव-वाहि-दतन , फ-ब अ सल्लाहुन्नबिय्यी-न मुबश्शिरी-न व मुन्ज़िरी-न व अन्ज़-ल म-अहुमुल किता-ब बिल्हक्क़ि लियह्कु-म बैनन्नासि फ़ी मख़्त-लफू फ़ीहि , व मख्त-ल-फ़ फ़ीहि इल्लल्लज़ी-न ऊतूहु मिम्-बअदि मा जाअत्हुमुल बय्यिनातु बग्यम्-बैनहुम् फ़हदल्लाहुल्लज़ी-न आमनू लिमख़्त-लफू फ़ीहि मिनल-हक्कि बि-इज्निही , वल्लाहु यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तकीम (213)
(पहले) सब लोग एक ही दीन रखते थे (फिर आपस में झगड़ने लगे तब) ख़ुदा ने नजात से ख़ुश ख़बरी देने वाले और अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बरों को भेजा और इन पैग़म्बरों के साथ बरहक़ किताब भी नाज़िल की ताकि जिन बातों में लोग झगड़ते थे किताबे ख़ुदा (उसका) फ़ैसला कर दे और फिर अफ़सोस तो ये है कि इस हुक्म से इख्तेलाफ किया भी तो उन्हीं लोगों ने जिन को किताब दी गयी थी और वह भी जब उन के पास ख़ुदा के साफ एहकाम आ चुके उसके बाद और वह भी आपस की शरारत से तब ख़ुदा ने अपनी मेहरबानी से (ख़ालिस) ईमानदारों को वह राहे हक़ दिखा दी जिस में उन लोगों ने इख्तेलाफ डाल रखा था और ख़ुदा जिस को चाहे राहे रास्त की हिदायत करता है (213)
अम् हसिब्तुम् अन् तद्खुलुल्-जन्न-त व लम्मा यअ्तिकुम् म-स-लुल्लज़ी-न ख़लौ मिन् कब्लिकुम , मस्सत्हुमुल् बअ्सा-उ वज़्ज़र्रा-उ व जुल्जि़लू हत्ता यकूलर्-रसूलु वल्लज़ी-न आमनू म-अ़हू मता नस्-रूल्लाहि , अला इन्-न नस्-रल्लाहि करीब (214)
क्या तुम ये ख्याल करते हो कि बेहश्त में पहुँच ही जाओगे हालॉकि अभी तक तुम्हे अगले ज़माने वालों की सी हालत नहीं पेश आयी कि उन्हें तरह तरह की तक़लीफों (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी ने घेर लिया था और ज़लज़ले में इस क़दर झिंझोडे ग़ए कि आख़िर (आज़िज़ हो के) पैग़म्बर और ईमान वाले जो उन के साथ थे कहने लगे देखिए ख़ुदा की मदद कब (होती) है देखो (घबराओ नहीं) ख़ुदा की मदद यक़ीनन बहुत क़रीब है (214)
यस्अलून-क माज़ा युन्फ़िकू-न , कुल मा अन्फ़क़्तुम् मिन् खौरिन् फ़-लिल्वालिदैनि वल-अक्रबी-न वल यतामा वल्मसाकीनि वब्निस्सबीलि , व मा तफ्अलू मिन् खैरिन् फ़-इन्नल्ला-ह बिही अलीम (215)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग पूछते हैं कि हम ख़ुदा की राह में क्या खर्च करें (तो तुम उन्हें) जवाब दो कि तुम अपनी नेक कमाई से जो कुछ खर्च करो तो (वह तुम्हारे माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों का हक़ है और तुम कोई नेक सा काम करो ख़ुदा उसको ज़रुर जानता है (215)
कुति-ब अलैकुमुल् – कितालु व हु-व कुरहुल्लकुम् व असा अन् तक्रहू शैअंव-व हु-व खैरूल्लकुम् व असा अन् तुहिब्बू शैअंव – व हु-व शर्रूल्लकुम , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून (216)*
(मुसलमानों) तुम पर जिहाद फर्ज क़िया गया अगरचे तुम पर शाक़ ज़रुर है और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ (जिहाद) को नापसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ को पसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो और ख़ुदा (तो) जानता ही है मगर तुम नही जानते हो (216)
यस्अलून-क अनिश्शहरिल-हरामि कितालिन् फ़ीहि , कुल कितालुन फ़ीहि कबीरून , व सद्दुन अन् सबीलिल्लाहि व कुफ्रूम् बिही वल्मस्जिदिल्-हरामि , व इख़राजु अहलिही मिन्हु अक्बरू अिन्दल्लाहि वल्-फ़ित्नतु अक्बरू मिनल्-कत्लि , व ला यज़ालू-न युक़ातिलू-नकुम् हत्ता यरूद्दूकुम् अन् दीनिकुम्इ निस्तताअू , व मंय्यर्-तदिद् मिन्कुम् अन् दीनिही फ़-यमुत् व हु-व काफिरून् फ़-उलाइ-क हबितत् अअ्मालुहुम् फिद्दुन्या वल् आखि-रति व उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून (217)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग हुरमत वाले महीनों की निस्बत पूछते हैं कि (आया) जिहाद उनमें जायज़ है तो तुम उन्हें जवाब दो कि इन महीनों में जेहाद बड़ा गुनाह है और ये भी याद रहे कि ख़ुदा की राह से रोकना और ख़ुदा से इन्कार और मस्जिदुल हराम (काबा) से रोकना और जो उस के अहल है उनका मस्जिद से निकाल बाहर करना (ये सब) ख़ुदा के नज़दीक इस से भी बढ़कर गुनाह है और फ़ितना परदाज़ी कुश्ती ख़़ून से भी बढ़ कर है और ये कुफ्फ़ार हमेशा तुम से लड़ते ही चले जाएँगें यहाँ तक कि अगर उन का बस चले तो तुम को तुम्हारे दीन से फिरा दे और तुम में जो शख्स अपने दीन से फिरा और कुफ़्र की हालत में मर गया तो ऐसों ही का किया कराया सब कुछ दुनिया और आखेरत (दोनों) में अकारत है और यही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह उसी में हमेशा रहेंगें (217)
इन्नल्लजी-न आमनू वल्लज़ी-न हाजरू व जाहदू फ़ी सबीलिल्लाहि उलाइ-क यर्जू-न रहमतल्लाहि , वल्लाहु गफूरूर्रहीम (218)
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और ख़ुदा की राह में हिजरत की और जिहाद किया यही लोग रहमते ख़ुदा के उम्मीदवार हैं और ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (218)
यस्अलून-क अनिल-खम्रि वल-मैसिरि कुल फ़ीहिमा इस्मुन् कबीरूंव-व मनाफ़िअु लिन्नासि व इस्मुहुमा अक्बरू मिन्नफ्अिहिमा , व यस्अलून-क माज़ा युन्फ़िकू-न , कुलिल-अफ़-व कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्-आयाति लअल्लकुम् त-तफ़क्करून (219)
(ऐ रसूल) तुमसे लोग शराब और जुए के बारे में पूछते हैं तो तुम उन से कह दो कि इन दोनो में बड़ा गुनाह है और कुछ फायदे भी हैं और उन के फायदे से उन का गुनाह बढ़ के है और तुम से लोग पूछते हैं कि ख़ुदा की राह में क्या ख़र्च करे तुम उनसे कह दो कि जो तुम्हारे ज़रुरत से बचे यूँ ख़ुदा अपने एहकाम तुम से साफ़ साफ़ बयान करता है (219)
फ़िद्दुन्या वल्-आखि-रति व यस्अलून – क अनिल यतामा , कुल इस्लाहुल्लहुम् खैरून् , व इन् तुख़ालितूहुम् फ़-इख्वानुकुम , वल्लाहु , यअलमुल मुफ्सि-द मिनल-मुस्लिहि , व लौ शाअल्लाहु ल – अअ्न – तकुम , इन्नल्ला-ह अजीजुन हकीम (220)
ताकि तुम दुनिया और आख़िरत (के मामलात) में ग़ौर करो और तुम से लोग यतीमों के बारे में पूछते हैं तुम (उन से) कह दो कि उनकी (इसलाह दुरुस्ती) बेहतर है और अगर तुम उन से मिलजुल कर रहो तो (कुछ हर्ज) नहीं आख़िर वह तुम्हारें भाई ही तो हैं और ख़ुदा फ़सादी को ख़ैर ख्वाह से (अलग ख़ूब) जानता है और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम को मुसीबत में डाल देता बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है (220)
व ला तन्किहुल मुश्रिकाति हत्ता युअमिन्-न व ल-अ-मतुम् मुअमि-नतुन् खैरूम्-मिम्-मुश्रि-कतिव् व लौ अअ्-जबत्कुम् व ला तुन्किहुल मुश्रिकी-न हत्ता युअ्मिनू , व ल-अब्दुम-मुअ्मिनुन् खैरूम् मिम्-मुश्रिकिंव वलौ अअ्ज-बकुम , उलाइ-क यदअू-न इलन्नारि वल्लाहु यद्अू इलल-जन्नति वल-मग्फिरति बि-इज्निही व युबय्यिनु आयातिही लिन्नासि लअल्लहुम् य-तज़क्करून (221)*
और (मुसलमानों) तुम मुशरिक औरतों से जब तक ईमान न लाएँ निकाह न करो क्योंकि मुशरिका औरत तुम्हें अपने हुस्नो जमाल में कैसी ही अच्छी क्यों न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हे कैसा ही अच्छा क्यो न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हें क्या ही अच्छा क्यों न मालूम हो मगर फिर भी बन्दा मोमिन उनसे ज़रुर अच्छा है ये (मुशरिक मर्द या औरत) लोगों को दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं और ख़ुदा अपनी इनायत से बेहिश्त और बख़्शिस की तरफ बुलाता है और अपने एहकाम लोगों से साफ साफ बयान करता है ताकि ये लोग चेते (221)
व यस्अलून-क अनिल-महीजि कुल हु-व अ-ज़न् फअ्तज़िलुन्निसा-अ फ़िल-महीजि वला तक्रबूहुन्-न हत्ता यत्हुर्-न फ़-इज़ा त-तह्हर् न फ़अ्तूहुन्-न मिन् हैसु अ-म-रकुमुल्लाहु , इन्नल्ला-ह युहिब्बुत्तव्वाबी-न व युहिब्बुल मु-त-तहिहरीन (222)
(ऐ रसूल) तुम से लोग हैज़ के बारे में पूछते हैं तुम उनसे कह दो कि ये गन्दगी और घिन की बीमारी है तो (अय्यामे हैज़) में तुम औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाएँ उनके पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाएँ तो जिधर से तुम्हें ख़ुदा ने हुक्म दिया है उन के पास जाओ बेशक ख़ुदा तौबा करने वालो और सुथरे लोगों को पसन्द करता है तुम्हारी बीवियाँ (गोया) तुम्हारी खेती हैं (222)
निसाउकुम् हरसुल्लकुम् फ़अतू हर्सकुम् अन्ना शिअ्तुम् व क़द्दिमू लि-अन्फुसिकुम , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नकुम् मुलाकूहु , व बश्शिरिल्-मुअ्मिनीन (223)
तो तुम अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ और अपनी आइन्दा की भलाई के वास्ते (आमाल साके) पेशगी भेजो और ख़ुदा से डरते रहो और ये भी समझ रखो कि एक दिन तुमको उसके सामने जाना है और ऐ रसूल ईमानदारों को नजात की ख़ुश ख़बरी दे दो (223)
व ला तज्अलुल्ला-ह अुर्-ज़तल् लिऐमानिकुम् अन् तबर्रू व तत्तकू व तुस्लिहू बैनन्नासि , वल्लाहु समीअुन अलीम (224)
और (मुसलमानों) तुम अपनी क़समों (के हीले) से ख़ुदा (के नाम) को लोगों के साथ सुलूक करने और ख़ुदा से डरने और लोगों के दरमियान सुलह करवा देने का मानेअ न ठहराव और ख़ुदा सबकी सुनता और सब को जानता है (224)
ला युआखिजु़कुमुल्लाहु बिल्लग्वि फ़ी ऐमानिकुम् व लाकिंय्युआख़िजुकुम बिमा क-सबत् कुलूबुकुम , वल्लाहु गफूरून् हलीम (225)
तुम्हारी लग़ो (बेकार) क़समों पर जो बेइख्तेयार ज़बान से निकल जाए ख़ुदा तुम से गिरफ्तार नहीं करने का मगर उन कसमों पर ज़रुर तुम्हारी गिरफ्त करेगा जो तुमने क़सदन (जान कर) दिल से खायीं हो और ख़ुदा बख्शने वाला बुर्दबार है (225)
लिल्लज़ी-न युअ्लू-न मिन्निसा-इहिम् तरब्बुसु अर्-ब-अति अश्हुरिन् फ़-इन् फाऊ फ़-इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम (226)
जो लोग अपनी बीवियों के पास जाने से क़सम खायें उन के लिए चार महीने की मोहलत है पस अगर (वह अपनी क़सम से उस मुद्दत में बाज़ आए) और उनकी तरफ तवज्जो करें तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है (226)
व इन् अ-जमुत्तला-क़ फ़-इन्नल्ला-ह समीअुन् अलीम (227)
और अगर तलाक़ ही की ठान ले तो (भी) बेशक ख़ुदा सबकी सुनता और सब कुछ जानता है (227)
वल्मुतल्लकातु य-तरब्बस्-न बि-अन्फुसिहिन्-न
सलास-त कुरूइन् , व ला यहिल्लु लहुन्-न अय्यक्तुम्-न मा ख़-लकल्लाहु फ़ी अरहामिहिन्-न इन् कुन्-न युअ्मिन्-न बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि , व बुउ-लतुहुन्-न अहक्कु बि-रद्दिहिन्-न फ़ी ज़ालि-क इन् अरादू इस्लाहन् , व लहुन्-न मिस्लुल्लज़ी अलैहिन्-न बिल्मअरूफ़ि व लिर्रिजालि अलैहिन्-न द-र-जतुन् , वल्लाहु अजीजुन् हकीम (228)
और जिन औरतों को तलाक़ दी गयी है वह अपने आपको तलाक़ के बाद तीन हैज़ के ख़त्म हो जाने तक निकाह सानी से रोके और अगर वह औरतें ख़ुदा और रोजे आख़िरत पर ईमान लायीं हैं तो उनके लिए जाएज़ नहीं है कि जो कुछ भी ख़ुदा ने उनके रहम (पेट) में पैदा किया है उसको छिपाएँ और अगर उन के शौहर मेल जोल करना चाहें तो वह (मुद्दत मज़कूरा) में उन के वापस बुला लेने के ज्यादा हक़दार हैं और शरीयत मुवाफिक़ औरतों का (मर्दों पर) वही सब कुछ हक़ है जो मर्दों का औरतों पर है हाँ अलबत्ता मर्दों को (फ़जीलत में) औरतों पर फौक़ियत ज़रुर है और ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है (228)
अत्तलाकु मर्रतानि फ़-इम्साकुम् बिमअ्रूफिन् औ तसरीहुम् बि इह्सानिन् , व ला यहिल्लु लकुम् अन् तअ्खुजू मिम्मा आतैतुमूहुन्-न शैअन् इल्ला अंय्यख़ाफ़ा अल्ला युक़ीमा हुदूदल्लाहि , फ़-इन् ख़िफ्तुम् अल्ला युकीमा हुदूदल्लाहि फ़ला जुना-ह अलैहिमा फ़ीमफ्तदत् बिही , तिल-क हुदूदुल्लाहि फ़ला तअतदूहा व मय्य-तअद्-द हुदूदल्लाहि फ़-उलाइ-क हुमुज्जालिमून (229)
तलाक़ रजअई जिसके बाद रुजू हो सकती है दो ही मरतबा है उसके बाद या तो शरीयत के मवाफिक़ रोक ही लेना चाहिए या हुस्न सुलूक से (तीसरी दफ़ा) बिल्कुल रूख़सत और तुम को ये जायज़ नहीं कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो उस में से फिर कुछ वापस लो मगर जब दोनों को इसका ख़ौफ़ हो कि ख़ुदा ने जो हदें मुक़र्रर कर दी हैं उन को दोनो मिया बीवी क़ायम न रख सकेंगे फिर अगर तुम्हे (ऐ मुसलमानो) ये ख़ौफ़ हो कि यह दोनो ख़ुदा की मुकर्रर की हुई हदो पर क़ायम न रहेंगे तो अगर औरत मर्द को कुछ देकर अपना पीछा छुड़ाए (खुला कराए) तो इसमें उन दोनों पर कुछ गुनाह नहीं है ये ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई हदें हैं बस उन से आगे न बढ़ो और जो ख़ुदा की मुक़र्रर की हुईहदों से आगे बढ़ते हैं वह ही लोग तो ज़ालिम हैं (229)
फ़-इन् तल्ल-कहा फ़ला तहिल्लु लहू मिम्-बअदु हत्ता तन्कि-ह ज़ौजन् गैरहू , फ़-इन् तल्ल-कहा फला जुना-ह अलैहिमा अंय्य-तरा जआ इन् ज़न्ना अंय्युकीमा हुदूदल्लाहि , व तिल-क हुदूदुल्लाहि युबय्यिनुहा लिकौमिंय्यअ्लमून (230)
फिर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) दे तो उसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह न कर ले उस के लिए हलाल नही हाँ अगर दूसरा शौहर निकाह के बाद उसको तलाक़ दे दे तब अलबत्ता उन मिया बीबी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है अगर उन दोनों को यह ग़ुमान हो कि ख़ुदा हदों को क़ायम रख सकेंगें और ये ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें हैं जो समझदार लोगों के वास्ते साफ साफ बयान करता है (230)
व इज़ा तल्लक्तुमुन्निसा-अ फ़-बलग्-न अ-ज-लहुन्-न फ़-अम्सिकूहुन्-न बिमअ्रूफ़िन औ सर्रिहूहुन्-न बिमअ्रूफिंव्-व ला तुम्सिकूहुन्-न ज़िरारल् लितअ्-तदू व मंय्यफ्अल् ज़ालि-क फ़-कद् ज़-ल-म नफ्सहू , व ला तत्तखिजू आयातिल्लाहि हुजुवंव-वज्कुरू निअ्-मतल्लाहि अलैकुम् व मा अन्ज़-ल अलैकुम् मिनल-किताबि वल्हिक्मति यअिजुकुम् बिही , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम • (231)*
और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दत पूरी होने को आए तो अच्छे उनवान से उन को रोक लो या हुस्ने सुलूक से बिल्कुल रुख़सत ही कर दो और उन्हें तकलीफ पहुँचाने के लिए न रोको ताकि (फिर उन पर) ज्यादती करने लगो और जो ऐसा करेगा तो यक़ीनन अपने ही पर जुल्म करेगा और ख़ुदा के एहकाम को कुछ हँसी ठट्टा न समझो और ख़ुदा ने जो तुम्हें नेअमतें दी हैं उन्हें याद करो और जो किताब और अक्ल की बातें तुम पर नाज़िल की उनसे तुम्हारी नसीहत करता है और ख़ुदा से डरते रहो और समझ रखो कि ख़ुदा हर चीज़ को ज़रुर जानता है (231)
व इज़ा तल्लक्तुमुन्निसा-अ फ़-बलग्-न अ-ज लहुन्-न फला तअ् जुलूहुन्-न अंय्यन किह-न अज्वाजहुन्-न इज़ा तराज़ौ बैनहुम् बिल्मअरूफ़ि , ज़ालि-क यू-अजू बिही मन् का-न मिन्कुम् युअ्मिनु बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि , ज़ालिकुम् अज्का लकुम् व अत्हरू , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअलमून (232)
और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और वह अपनी मुद्दत (इद्दत) पूरी कर लें तो उन्हें अपने शौहरों के साथ निकाह करने से न रोकों जब आपस में दोनों मिया बीवी शरीयत के मुवाफिक़ अच्छी तरह मिल जुल जाएँ ये उसी शख्स को नसीहत की जाती है जो तुम में से ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान ला चुका हो यही तुम्हारे हक़ में बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात है और उसकी ख़ूबी ख़ुदा खूब जानता है और तुम (वैसा) नहीं जानते हो (232)
वल-वालिदातु युर ज़िअ्-न औलादहुन्-न हौलैनि कामिलैनि लि-मन् अरा-द अंय्यु तिम्मर्र जा-अ-त , व अलल्-मौलूदि लहू रिज्कुहुन्-न व किस्वतुहुन्-न बिल्मअरूफ़ि , ला तुकल्लफु नफ्सुन् इल्ला वुस्अहा ला तुज़ार-र वालि – दतुम् बि – व – लदिहा व ला मौलूदुल्लहू बि – व – लदिहा व अलल् – वारिसि मिस्लु ज़ालि – क फ़ – इन् अरादा फ़िसालन् अन् तराज़िम् मिन्हुमा व तशावुरिन् फला जुना – ह अलैहिमा , व इन् अरत्तुम अन् तस्तऱज़िअू औलादकुम् फ़ला जुना-ह अलैकुम् इज़ा सल्लम्तुम् मा आतैतुम् बिल्मअरूफ़ि , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला – ह बिमा तअमलू-न बसीर (233)
और (तलाक़ देने के बाद) जो शख्स अपनी औलाद को पूरी मुद्दत तक दूध पिलवाना चाहे तो उसकी ख़ातिर से माएँ अपनी औलाद को पूरे दो बरस दूध पिलाएँ और जिसका वह लड़का है (बाप) उस पर माओं का खाना कपड़ा दस्तूर के मुताबिक़ लाज़िम है किसी शख्स को ज़हमत नहीं दी जाती मगर उसकी गुन्जाइश भर न माँ का उस के बच्चे की वजह से नुक़सान गवारा किया जाए और न जिस का लड़का है (बाप) उसका (बल्कि दस्तूर के मुताबिक़ दिया जाए) और अगर बाप न हो तो दूध पिलाने का हक़ उसी तरह वारिस पर लाज़िम है फिर अगर दो बरस के क़ब्ल माँ बाप दोनों अपनी मरज़ी और मशवरे से दूध बढ़ाई करना चाहें तो उन दोनों पर कोई गुनाह नहीं और अगर तुम अपनी औलाद को (किसी अन्ना से) दूध पिलवाना चाहो तो उस में भी तुम पर कुछ गुनाह नहीं है बशर्ते कि जो तुमने दस्तूर के मुताबिक़ मुक़र्रर किया है उन के हवाले कर दो और ख़ुदा से डरते रहो और जान रखो कि जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देखता है (233)
वल्लज़ी – न यु – तवफ्फ़ौ – न मिन्कुम् व य – ज़रू – न अज्वाजंय्य – तरब्बस् – न बिअन्फुसिहिन् – न अर्ब – अ – त अश्हुरिवं – व अश्रन् फ़ – इज़ा बलग – न अ – ज – लहुन् – न फला जुना – ह अलैकुम् फ़ीमा फ़ – अल् – न फ़ी अन्फुसिहिन्-न बिल्मअरूफि , वल्लाहु बिमा तअ्मलू – न ख़बीर (234)
और तुममें से जो लोग बीवियाँ छोड़ के मर जाएँ तो ये औरतें चार महीने दस रोज़ (इद्दा भर) अपने को रोके (और दूसरा निकाह न करें) फिर जब (इद्दे की मुद्दत) पूरी कर ले तो शरीयत के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें इस बारे में तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से ख़बरदार है (234)
व ला जुना – ह अलैकुम फ़ीमा अर्रज्तुम् बिही मिन् ख़ित्बतिन्निसा – इ औ अक्नन्तुम् फी अन्फु सिकुम , अलिमल्लाहु अन्नकुम् स – तज्कुरूनहुन् – न व लाकिल्ला तुवाअिदूहुन् – न सिर्रन् इल्ला अन् तकूलू कौलम् – मअ्रूफ़न् , व ला तअ्ज़िमू अुक्दतन्निकाहि हत्ता यब्लुगल – किताबु अ – ज लहू , वअलमू अन्नल्ला – ह यअ्लमु मा फ़ी अन्फुसिकुम् फ़ह् – ज़रूहु वअ्लमू अन्नल्ला – ह गफूरून् हलीम (235)*
और अगर तुम (उस ख़ौफ से कि शायद कोई दूसरा निकाह कर ले) उन औरतों से इशारतन निकाह की (कैद इद्दा) ख़ास्तगारी (उम्मीदवारी) करो या अपने दिलो में छिपाए रखो तो उसमें भी कुछ तुम पर इल्ज़ाम नहीं हैं (क्योंकि) ख़ुदा को मालूम है कि (तुम से सब्र न हो सकेगा और) उन औरतों से निकाह करने का ख्याल आएगा लेकिन चोरी छिपे से निकाह का वायदा न करना मगर ये कि उन से अच्छी बात कह गुज़रों (तो मज़ाएक़ा नहीं) और जब तक मुक़र्रर मियाद गुज़र न जाए निकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो कि जो कुछ तुम्हारी दिल में है ख़ुदा उस को ज़रुर जानता है तो उस से डरते रहो और (ये भी) जान लो कि ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला बुर्दबार है (235)
ला जुना – ह अलैकुम् इन् तल्लक्तुमुन्निसा – अ मा लम् तमस्सूहुन् – न औ तफ़रिजू लहुन् – न फ़री – ज़तन – व मत्तिअ़ू हुन् – न अलल् – मूसिअि क़ – दरूहू व अलल् – मुक्तिरि क़ – दरूहू मताअम् बिल्मअ्रूफ़ि हक्कन् अलल – मुह्सिनीन (236)
और अगर तुम ने अपनी बीवियों को हाथ तक न लगाया हो और न महर मुअय्युन किया हो और उसके क़ब्ल ही तुम उनको तलाक़ दे दो (तो इस में भी) तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है हाँ उन औरतों के साथ (दस्तूर के मुताबिक़) मालदार पर अपनी हैसियत के मुआफिक़ और ग़रीब पर अपनी हैसियत के मुवाफिक़ (कपड़े रुपए वग़ैरह से) कुछ सुलूक करना लाज़िम है नेकी करने वालों पर ये भी एक हक़ है (236)
व इन् तल्लक्तुमूहुन् – न मिन् कब्लि अन् तमस्सूहुन् – न व कद् फ़रज्तुम् लहुन् – न फ़री – जतन् फ़ – निस्फु मा फ़रज्तुम् इल्ला अंय्यअ्फू – न औ यअ्फुवल्लज़ी बि – यदिही उक्दतुन्निकाहि , व अन् तअफू अक़्रबु लित्तक्वा , व ला तन्सवुल – फ़ज़ – ल बैनकुम , इन्नल्ला – ह बिमा तअ्मलू – न बसीर (237)
और अगर तुम उन औरतों का मेहर तो मुअय्यन कर चुके हो मगर हाथ लगाने के क़ब्ल ही तलाक़ दे दो तो उन औरतों को मेहर मुअय्यन का आधा दे दो मगर ये कि ये औरतें ख़ुद माफ कर दें या उन का वली जिसके हाथ में उनके निकाह का एख्तेयार हो माफ़ कर दे (तब कुछ नही) और अगर तुम ही सारा मेहर बख्श दो तो परहेज़गारी से बहुत ही क़रीब है और आपस की बुर्ज़ुगी तो मत भूलो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देख रहा है (237)
हाफ़िजू अलस् स – ल – वाति वस्सलातिल – वुस्ता व कूमू लिल्लाहि कानितीन (238)
और (मुसलमानों) तुम तमाम नमाज़ों की और ख़ुसूसन बीच वाली नमाज़ सुबह या ज़ोहर या अस्र की पाबन्दी करो और ख़ास ख़ुदा ही वास्ते नमाज़ में क़ुनूत पढ़ने वाले हो कर खड़े हो फिर अगर तुम ख़ौफ की हालत में हो (238)
फ़ – इन् खिफ्तुम् फ़ – रिजालन् औ रूक्बानन् फ़ – इज़ा अमिन्तुम् फ़ज्कुरूल्ला – ह कमा अल् – ल – म – कुम् मा लम् तकूनू तअ्लमून (239)
और पूरी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पैदल जिस तरह बन पड़े पढ़ लो फिर जब तुम्हें इत्मेनान हो तो जिस तरह ख़ुदा ने तुम्हें (अपने रसूल की मआरफत इन बातों को सिखाया है जो तुम नहीं जानते थे (239)
वल्लज़ी – न यु – तवफ्फ़ौ – न मिन्कुम् व य – ज़ – रू – न अज्वाजंव् – वसिय्यतल् लि – अज्वाजिहिम् मताअन् इलल – हौलि गै – र इख्राजिन् फ़ – इन ख़रज् – न फ़ला जुना – ह अलैकुम् फी मा फ़ – अल् – न फ़ी अन्फुसिहिन् – न मिम् – मअरूफ़िन् , वल्लाहु अज़ीजुन हकीम (240)
उसी तरह ख़ुदा को याद करो और तुम में से जो लोग अपनी बीवियों को छोड़ कर मर जाएँ उन पर अपनी बीबियों के हक़ में साल भर तक के नान व नुफ्के (रोटी कपड़ा) और (घर से) न निकलने की वसीयत करनी (लाज़िम) है पस अगर औरतें ख़ुद निकल खड़ी हो तो जायज़ बातों (निकाह वगैरह) से कुछ अपने हक़ में करे उसका तुम पर कुछ इल्ज़ाम नही है और ख़ुदा हर यै पर ग़ालिब और हिक़मत वाला है (240)
व लिल्मुतल्लकाति मताअुम् बिलमअरूफ़ि , हक्कन अलल मुत्तकीन (241)
और जिन औरतों को ताअय्युन मेहर और हाथ लगाए बगैर तलाक़ दे दी जाए उनके साथ जोड़े रुपए वगैरह से सुलूक करना लाज़िम है (241)
कज़ालि – क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअल्लकुम् तअ्किलून (242)*
(ये भी) परहेज़गारों पर एक हक़ है उसी तरह ख़ुदा तुम लोगों की हिदायत के वास्ते अपने एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता है (242)
अलम् त – र इलल्लज़ी – न ख़ – रजू मिन् दियारिहिम् व हुम् उलूफुन् ह – ज़रल्मौति फ़का – ल लहुमुल्लाहु मूतू सुम् – म अह्याहुम , इन्नल्ला – ह लजू फ़ज्लिन् अलन्नासि व लाकिन् – न अक्सरन्नासि ला यश्कुरून (243)
ताकि तुम समझो (ऐ रसूल) क्या तुम ने उन लोगों के हाल पर नज़र नही की जो मौत के डर के मारे अपने घरों से निकल भागे और वह हज़ारो आदमी थे तो ख़ुदा ने उन से फरमाया कि सब के सब मर जाओ (और वह मर गए) फिर ख़ुदा न उन्हें जिन्दा किया बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा मेहरबान है मगर अक्सर लोग उसका शुक्र नहीं करते (243)
व कातिलू फी सबीलिल्लाहि वअ्लमू अन्नल्ला – ह समीअ़ुन् अलीम (244)
और मुसलमानों ख़ुदा की राह मे जिहाद करो और जान रखो कि ख़ुदा ज़रुर सब कुछ सुनता (और) जानता है (244)
मन् ज़ल्लजी युक़्रिजुल्ला – ह कर्जन् ह – सनन् फ़ – युज़ाअि – फहू लहू अज्आफन् कसीर – तन् , वल्लाहु यक्बिजु व यब्सुतु व इलैहि तुर्ज़अून (245)
है कोई जो ख़ुदा को क़र्ज़ ए हुस्ना दे ताकि ख़ुदा उसके माल को इस के लिए कई गुना बढ़ा दे और ख़ुदा ही तंगदस्त करता है और वही कशायश देता है और उसकी तरफ सब के सब लौटा दिये जाओगे (245)
अलम् त – र इलल – म – लइ मिम् – बनी इस्राई – ल मिम् – बअ्दि मूसा • इज़ कालू लि – नबिय्यिल् – लहुमुब्अस् लना मलिकन्नुक़ातिल फी सबीलिल्लाहि , का – ल हल असैतुम् इन् कुति – ब – अलैकुमुल् – कितालु अल्ला तुक़ातिलू , कालू व मा लना अल्ला नुक़ाति – ल फ़ी सबीलिल्लाहि व कद् उख्रिज्ना मिन् दियारिना व अब्ना – इना , फ़ – लम्मा कुति – ब अलैहिमुल् – कितालु तवल्लौ इल्ला क़लीलम् मिन्हुम , वल्लाहु अलीमुम् – बिज्जालिमीन (246)
(ऐ रसूल) क्या तुमने मूसा के बाद बनी इसराइल के सरदारों की हालत पर नज़र नही की जब उन्होंने अपने नबी (शमूयेल) से कहा कि हमारे वास्ते एक बादशाह मुक़र्रर कीजिए ताकि हम राहे ख़ुदा में जिहाद करें (पैग़म्बर ने) फ़रमाया कहीं ऐसा तो न हो कि जब तुम पर जिहाद वाजिब किया जाए तो तुम न लड़ो कहने लगे जब हम अपने घरों और अपने बाल बच्चों से निकाले जा चुके तो फिर हमे कौन सा उज़्र बाक़ी है कि हम ख़ुदा की राह में जिहाद न करें फिर जब उन पर जिहाद वाजिब किया गया तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा सब के सब ने लड़ने से मुँह फेरा और ख़ुदा तो ज़ालिमों को खूब जानता है (246)
व का – ल लहुम् नबिय्युहुम् इन्नल्ला – ह कद् ब – अ – स लकुम् तालू – त मलिकन् , कालू अन्ना यकूनु लहुल्मुल्कु अलैना व नह्नु अहक्कु बिल्मुल्कि मिन्हु व लम् युअ – त स – अतम् मिनल – मालि , का – ल इन्नल्लाहस्तफ़ाहु अलैकुम् व ज़ा – दहू बस्त – तन् फ़िल – इल्मि वल् – जिस्मि , वल्लाहु युअ्ती मुल्कहू मंय्यशा – उ , वल्लाहु वासिअुन् अलीम (247)
और उनके नबी ने उनसे कहा कि बेशक ख़ुदा ने तुम्हारी दरख्वास्त के (मुताबिक़ तालूत को तुम्हारा बादशाह मुक़र्रर किया (तब) कहने लगे उस की हुकूमत हम पर क्यों कर हो सकती है हालाकि सल्तनत के हक़दार उससे ज्यादा तो हम हैं क्योंकि उसे तो माल के एतबार से भी फ़ारगुल बाली (ख़ुशहाली) तक नसीब नहीं (नबी ने) कहा ख़ुदा ने उसे तुम पर फज़ीलत दी है और माल में न सही मगर इल्म और जिस्म का फैलाव तो उस का ख़ुदा ने ज्यादा फरमाया हे और ख़ुदा अपना मुल्क जिसे चाहें दे और ख़ुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और वाक़िफ़कार है (247)
व का – ल लहुम् नबिय्युहुम् इन् – न आय – त मुल्किही अंय्यअ्ति – यकुमुत्ताबूतु फ़ीहि सकीनतुम् मिर्रब्बिकुम् व बकिय्यतुम् मिम्मा त – र – क आलु मूसा व आलु हारू – न तहमिलुहुल् – मलाइ – कतु , इन्न फ़ी जालि – क लआ – यतल्लकुम् इन् कुन्तुम् मुअमिनीन (248)*
और उन के नबी ने उनसे ये भी कहा इस के (मुनाजानिब अल्लाह) बादशाह होने की ये पहचान है कि तुम्हारे पास वह सन्दूक़ आ जाएगा जिसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तसकीन दे चीजें और उन तब्बुरक़ात से बचा खुचा होगा जो मूसा और हारुन की औलाद यादगार छोड़ गयी है और उस सन्दूक को फरिश्ते उठाए होगें अगर तुम ईमान रखते हो तो बेशक उसमें तुम्हारे वास्ते पूरी निशानी है (248)
फ लम्मा फ़ – स – ल – तालूतु बिल्जुनूदि का – ल इन्नल्ला – ह मुब्तलीकुम बि – न हरिन् फ़ – मन् शरि – ब मिन्हु फलै – स मिन्नी व मल्लम् यत्अमहु फ़ – इन्नहू मिन्नी इल्ला मनिग्त – र – फ़ गुर् – फ़तम् बि – यदिही फ़ – शरिबू मिन्हु इल्ला क़लीलम् मिन्हुम , फ़ – लम्मा जा – व ज़हू हु – व वल्लज़ी – न आमनू म-अहू कालू ला ता – क – त लनल् – यौ – म बिजालू – त व जुनूदिही , कालल्लज़ी – न यजुन्नू – न अन्नहुम् मुलाकुल्लाहि कम् मिन फ़ि – अतिन् कलीलतिन् ग – लबत् फ़ि – अतन्
कसी – रतम् बि – इज्निल्लाहि , वल्लाहु म – अस्साबिरीन (249)
फिर जब तालूत लशकर समैत (शहर ऐलिया से) रवाना हुआ तो अपने साथियों से कहा देखो आगे एक नहर मिलेगी इस से यक़ीनन ख़ुदा तुम्हारे सब्र की आज़माइश करेगा पस जो शख्स उस का पानी पीयेगा मुझे (कुछ वास्ता) नही रखता और जो उस को नही चखेगा वह बेशक मुझ से होगा मगर हाँ जो अपने हाथ से एक (आधा चुल्लू भर के पी) ले तो कुछ हर्ज नही पस उन लोगों ने न माना और चन्द आदमियों के सिवा सब ने उस का पानी पिया ख़ैर जब तालूत और जो मोमिनीन उन के साथ थे नहर से पास हो गए तो (ख़ास मोमिनों के सिवा) सब के सब कहने लगे कि हम में तो आज भी जालूत और उसकी फौज से लड़ने की सकत नहीं मगर वह लोग जिनको यक़ीन है कि एक दिन ख़ुदा को मुँह दिखाना है बेधड़क बोल उठे कि ऐसा बहुत हुआ कि ख़ुदा के हुक्म से छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ालिब आ गयी है और ख़ुदा सब्र करने वालों का साथी है (249)
व लम्मा ब – रजू लिजालू – त व जुनूदिही कालू रब्बना अफ्रिग अलैना सबरंव – व सब्बित् अक्दामना वन्सुरना अलल् – कौमिल् काफ़िरीन (250)
(ग़रज़) जब ये लोग जालूत और उसकी फौज के मुक़ाबले को निकले तो दुआ की ऐ मेरे परवरदिगार हमें कामिल सब्र अता फरमा और मैदाने जंग में हमारे क़दम जमाए रख और हमें काफिरों पर फतेह इनायत कर (250)
फ – ह – ज़मूहुम् बि – इज्निल्लाहि व क – त – ल दावूदु जालू – त व आताहुल्लाहुल – मुल् – क वल् – हिक्म – त व अल्ल – महू मिम्मा यशा – उ , व लौ ला दफ़्अुल्लाहिन्ना – स बअ् – ज़हुम् बिबअ्ज़िल ल – फ – स – दतिल – अर्जु व लाकिन्नल्ला – ह जू फज्लिन् अलल – आलमीन (251)
फिर तो उन लोगों ने ख़ुदा के हुक्म से दुशमनों को शिकस्त दी और दाऊद ने जालूत को क़त्ल किया और ख़ुदा ने उनको सल्तनत व तदबीर तम्द्दुन अता की और इल्म व हुनर जो चाहा उन्हें गोया घोल के पिला दिया और अगर ख़ुदा बाज़ लोगों के ज़रिए से बाज़ का दफाए (शर) न करता तो तमाम रुए ज़मीन पर फ़साद फैल जाता मगर ख़ुदा तो सारे जहाँन के लोगों पर फज़ल व रहम करता है (251)
तिल – क आयातुल्लाहि नत्लूहा अलै – क बिल्हक्कि , व इन्न – क ल – मिनल – मुरसलीन (252)
ऐ रसूल ये ख़ुदा की सच्ची आयतें हैं जो हम तुम को ठीक ठीक पढ़के सुनाते हैं और बेशक तुम ज़रुर रसूलों में से हो (252)