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Quran Para 1 in Hindi | Quran Para 1 with Hindi translation

Muhammadi Gyaan by Muhammadi Gyaan
March 14, 2023
in Quran
1
Quran Para 1 in Hindi

Quran Para 1 in Hindi

Quran Para 1 in Hindi | Quran Para 1 with Hindi translation

कुरआन पारा न० – 1 हिन्दी में

सूरह न० 1
सूरह अल-फातिहा (मक्की)

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है

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अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन (1)
तारीफ़ अल्लाह ही के लिये है जो तमाम क़ायनात का रब है (1)

अर्रहमानिर्रहीम (2)
रहमान और रहीम है (2)

मालिकि यौमिद्दीन (3)
रोज़े जज़ा का मालिक है

इय्या-क नअ्बुदु व इय्या-क नस्तअीन (4)
हम तेरी ही इबादत करते हैं, और तुझ ही से मदद मांगते है

इह्-दिनस्सिरातल्-मुस्तकीम (5)
हमें सीधा रास्ता दिखा

सिरातल्लज़ी-न अन्अ़म्-त अलैहिम् (6) गैरिल्-म़ग्जूबि अलैहिम् व-लज़्ज़ाल्लीन (7)*
उन लोगों का रास्ता जिन पर तूने इनाम फ़रमाया, जो माअतूब नहीं हुए, जो भटके हुए नहीं है (7)

सूरह न० 2
सूरह अल-बकरह

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है)

अलिफ्-लाम्-मीम् (1)
अलीफ़ लाम मीम (1)

जालिकल्-किताबु ला रै-ब फ़ीहि हुदल्लिल्-मुत्तकीन (2)
ये वह किताब है । जिस ( के किताबे खुदा होने ) में कुछ भी शक नहीं ( ये ) परहेज़गारों की रहनुमा है (2)

अल्लज़ी-न युअमिनू-न बिल-गैबि व युक़ीमूनस्सला-त व-मिम्मा र-ज़क़्नाहुम् युन्फिकून (3)
जो ग़ैब पर ईमान लाते हैं और ( पाबन्दी से ) नमाज़ अदा करते हैं और जो कुछ हमने उनको दिया है उसमें से ( राहे खुदा में ) ख़र्च करते हैं (3)

वल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क वमा उन्जि-ल मिन् कब्लि-क
व बिल्-आखि-रति हुम् यूकिनून (4)

और जो कुछ तुम पर ( ऐ रसूल ) और तुम से पहले नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाते हैं और वही आख़िरत का यक़ीन भी रखते हैं (4)

उलाइ-क अला हुदम्-मिर्रब्बिहिम् व उलाइ-क हुमुल्-मुफ़लिहून (5)
यही लोग अपने परवरदिगार की हिदायत पर
(आमिल) हैं और यही लोग अपनी दिली मुरादें पाएँगे (5)

इन्नल्लज़ी-न क-फरू सवाउन् अलैहिम् अ-अन्जर-तहुम् अम् लम् तुन्जिरहुम ला युअमिनून (6)
बेशक जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया उनके लिए बराबर है ( ऐ रसूल ) ख्वाह ( चाहे ) तुम उन्हें डराओ या न डराओ वह ईमान न लाएंगे (6)

ख-तमल्लाहु अला कुलूबिहिम् व अला सम्अिहिम् व अला अब्सारिहिम् गिशा-वतुंव-व लहुम् अज़ाबुन् अज़ीम (7)*
उनके दिलों पर और उनके कानों पर नज़र करके खुदा ने तसदीक़ कर दी है कि ये ईमान न लाएँगे और उनकी आँखों पर परदा पड़ा हुआ है और उन्हीं के लिए ( बहुत ) बड़ा अज़ाब है (7)

व मिनन्नासि मंय्यकूलु आमन्ना बिल्लाहि व बिल्यौमिल्-आखिरि व मा हुम् बिमुअमिनीन • (8)
और बाज़ लोग ऐसे भी हैं जो ( ज़बान से तो ) कहते हैं कि हम खुदा पर और क़यामत पर ईमान लाए हालाँकि वह दिल से ईमान नहीं लाए (8)

युख़ादिअूनल्ला-ह वल्लज़ी-न आमनू , व मा यख्दअू-न इल्ला अन्फुसहुम् व मा यश्अुरून (9)
खुदा को और उन लोगों को जो ईमान लाए धोखा देते हैं हालाँकि वह अपने आपको धोखा देते हैं और कुछ शऊर नहीं रखते हैं (9)

फ़ी कुलू बिहिम् म-र-जुन् फ़ज़ा – दहुमुल्लाहु म-र-जन् व लहुम् अज़ाबुन् अलीमुम् बिमा कानू यक्ज़िबून (10)
उनके दिलों में मर्ज़ था ही अब खुदा ने उनके मर्ज़ को और बढ़ा दिया और चूँकि वह लोग झूठ बोला करते थे इसलिए उन पर तकलीफ देह अज़ाब है (10)

व इज़ा की-ल लहुम् ला तुफ्सिदू फिलअर्ज़ि कालू इन्नमा नहनु मुस्लिहून (11)
और जब उनसे कहा जाता है कि मुल्क में फसाद न करते फिरो ( तो ) कहते हैं कि हम तो सिर्फ इसलाह करते (11)

अला इन्नहुम् हुमुल-मुफ्सिदू-न व ला किल्ला यश्अुरून (12)
ख़बरदार हो जाओ बेशक यही लोग फसादी हैं लेकिन समझते नहीं (12)

व इज़ा की-ल लहुम् आमिनू कमा आ-मनन्नासु कालू अनुअ्मिनु कमा आ-मनस् सुफ़-हा-उ , अला इन्नहुम् हुमुस्-सुफ़-हा-उ
वला किल्ला यअलमून (13)

और जब उनसे कहा जाता है कि जिस तरह और लोग ईमान लाए हैं तुम भी ईमान लाओ तो कहते हैं क्या हम भी उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह और बेवकूफ़ लोग ईमान लाएँ , ख़बरदार हो जाओ लोग बेवकूफ़ हैं लेकिन नहीं जानते (13)

व इज़ा लकुल्लज़ी-न आमनू कालू आमन्ना व इज़ा खलौ इला शयातीनिहिम् कालू इन्ना म-अकुम् इन्नमा नहनु मुस्तहज़िऊन (14)
और जब उन लोगों से मिलते हैं जो ईमान ला चुके तो कहते हैं हम तो ईमान ला चुके और जब अपने शैतानों के साथ तनहा रह जाते हैं तो कहते हैं हम तुम्हारे साथ हैं हम तो ( मुसलमानों को ) बनाते हैं (14)

अल्लाहु यस्तहज़िउ बिहिम् व यमुद्दुहुम फ़ी तुगयानिहिम् यअमहून (15)
(वह क्या बनाएँगे) खुदा उनको बनाता है और उनको ढील देता है कि वह अपनी सरकशी में ग़लत पेचाँ ( उलझे ) (15)

उलाइ-कल्लज़ी-नश्त-र वुज़ ज़ला-ल-त बिल्हुदा फ़मा रबिहत्-तिजारतुहुम् व मा कानू मुह्तदीन (16)
यही वह लोग हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही ख़रीद ली , फिर न उनकी तिजारत ही ने कुछ नफ़ा दिया और न उन लोगों ने हिदायत ही पाई (16)

म-स-लुहुम् क-म-सलिल्-लज़िस्तौ-कद नारन् फ़-लम्मा अज़ा-अत् मा हौ-लहू ज़-हबल्लाहु बिनूरिहिम् व त-र-कहुम् फ़ी जुलुमातिल्ला युब्सिरून (17)
उन लोगों की मिसाल ( तो ) उस शख्स की सी है जिसने ( रात के वक्त मजमे में ) भड़कती हुईआग रौशन की फिर जब आग ( के शोले ) ने उसके गिर्दो पेश ( चारों ओर ) खूब उजाला कर दिया तो खुदा ने उनकी रौशनी ले ली और उनको घटाटोप अंधेरे में छोड़ दिया (17)

सुम्मुम्-बुक्मुन अुम्युन् फहुम् ला यर्जिअून (18)
कि अब उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता ये लोग बहरे गूंगे अन्धे हैं कि फिर अपनी गुमराही से बाज़ नहीं आ सकते (18)

औ क-सय्यिबिम-मिनस्समा-इ फ़ीहि जुलुमातुंव व-रअदुंव व-बरकुन , यज्अलू-न असाबि-अहुम् फ़ी आज़ानिहिम् मिनस्सवाअिकि ह-जरल्मौति वल्लाहु मुहीतुम्-बिल्काफिरीन (19)
या उनकी मिसाल ऐसी है जैसे आसमानी बारिश जिसमें तारिकियाँ ग़र्ज़ बिजली हो मौत के खौफ से कड़क के मारे अपने कानों में ऊँगलियाँ दे लेते हैं हालाँकि खुदा काफ़िरों को ( इस तरह ) घेरे हुए है ( कि उसक हिल नहीं सकते ) (19)

यकादुल-बरकु यख्तफु अब्सा-रहुम् , कुल्लमा अज़ा-अ लहुम् मशौ फीहि व इज़ा अज्ल-म अलैहिम् कामू वलौ शा-अल्लाहु ल-ज़-ह-ब बिसम्अिहिम् व अब्सारिहिम , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन कदीर (20)*
क़रीब है कि बिजली उनकी आँखों को चौन्धिया दे जब उनके आगे बिजली चमकी तो उस रौशनी में चल खड़े हुए और जब उन पर अंधेरा छा गया तो ( ठिठके के ) खड़े हो गए और खुदा चाहता तो यूँ भी उनके देखने और सुनने की कूवतें छीन लेता बेशक खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (20)

या अय्युहन्नासुअ् बुदू रब्बकुमुल्लजी ख-ल-ककुम् वल्लज़ी-न मिन् कब्लिकुम लअल्लकुम् तत्तकून (21)
लोगों अपने परवरदिगार की इबादत करो जिसने तुमको और उन लोगों को जो तुम से पहले थे पैदा किया है अजब नहीं तुम परहेज़गार बन जाओ (21)

अल्लजी ज-अ-ल लकुमुल् अर्-ज़ फिराशंव-वस्समा-अ बिनाअंव व-अन्ज-ल मिनस्समा-इ माअन् फ़-अख्-र-ज बिही मिनस्स-मराति ‘ रिज्कल लकुम् फला तज्अलू लिल्लाहि अन्दादंव व-अन्तुम् तअलमून (22)
जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन का बिछौना और आसमान को छत बनाया और आसमान से पानी बरसाया फिर उसी ने तुम्हारे खाने के लिए बाज़ फल पैदा किए पस किसी को खुदा का हमसर न बनाओ हालाँकि तुम खूब जानते हो (22)

व इन कुन्तुम् फी रैबिम्-मिम्मा नज्जलना अ़ला अब्दिना फ़अ्तू बिसू-रतिम् मिम् मिस्लिही वद्अु शु-हदाअकुम् मिन् दूनिल्लाहि इन कुन्तुम् सादिक़ीन (23)
और अगर तुम लोग इस कलाम से जो हमने अपने बन्दे ( मोहम्मद ) पर नाज़िल किया है शक में पड़े हो पस अगर तुम सच्चे हो तो तुम ( भी ) एक सूरा बना लाओ और खुदा के सिवा जो भी तुम्हारे मददगार हों उनको भी बुला लो (23)

फ़-इल्लम तफ्अलू व लन् तफ्अलू फत्तकुन्नारल्लती व कूदुहन्नासु वलहिजा-रतु उअिद्दत् लिल्काफ़िरीन (24)
पस अगर तुम ये नहीं कर सकते हो और हरगिज़ नहीं कर सकोगे तो उस आग से डरो सिके ईधन आदमी और पत्थर होंगे और काफ़िरों के लिए तैयार की गई है (24)

व बश्शिरिल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति अन्-न लहुम् जन्नातिन तज्-री मिन् तहतिहल्-अन्हारू , कुल्लमा रूज़िकू मिन्हा मिन् स-म-रतिर्-रिज्कन् कालू हाज़ल्लजी रूज़िक्ना मिन् कब्लू व उतू बिहि मु-तशाबिहन् , व लहुम् फ़ीहा अज्वाजुम् मु-तह्ह-रतुवं व हुम् फ़ीहा खालिदून (25)
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए उनको ( ऐ पैग़म्बर ) खुशख़बरी दे दो कि उनके लिए ( बेहिश्त के ) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरे जारी हैं जब उन्हें इन बाग़ात का कोई मेवा खाने को मिलेगा तो कहेंगे ये तो वही ( मेवा है जो पहले भी हमें खाने को मिल चुका है ) (क्योंकि उन्हें मिलती जुलती सूरत व रंग के (मेवे) मिला करेंगे और बेहिश्त में उनके लिए साफ सुथरी बीवियाँ होगी और ये लोग उस बाग़ में हमेशा रहेंगे (25)

इन्नल्ला-ह ला यस्तहयी अंय्यजरि-ब म-स-लम्मा बअू-जतन् फ़मा फौ-कहा , फ-अम्मल्ल जी-न आमनू फ़-यअ लमू-न अन्नहुलहक्कु मिर्रब्बिहिम , वअम्मल्लज़ी-न क-फ़रू फ़ यकूलू-न माज़ा अरादल्लाहु बिहाज़ा म-सलन् • युज़िल्लु बिही कसीरंव् व यहदी बिही कसीरन् , व मा युज़िल्लु बिही इल्लल्-फ़ासिक़ीन (26)
बेशक खुदा मच्छर या उससे भी बढकर ( हक़ीर चीज़ ) की कोई मिसाल बयान करने में नहीं झेंपता पस जो लोग ईमान ला चुके हैं वह तो ये यक़ीन जानते हैं कि ये ( मिसाल ) बिल्कुल ठीक है और ये परवरदिगार की तरफ़ से है ( अब रहे ) वह लोग जो काफ़िर है पस वह बोल उठते हैं कि खुदा का उस मिसाल से क्या मतलब है , ऐसी मिसाल से खुदा बहतेरों की हिदायत करता है मगर गुमराही में छोड़ता भी है तो ऐसे बदकारों को (26)

अल्लज़ी-न यन्कुजु-न अहदल्लाहि मिम्-बअ्दि मीसाकिही व यक्तअू-न मा अ-मरल्लाहु बिही अंय्यू-स-ल व युफ्सिदू-न फ़िल्अर्ज़ि उलाइ-क हुमुल्-ख़ासिरून (27)
जो लोग खुदा के एहदो पैमान को मज़बूत हो जाने के बाद तोड़ डालते हैं और जिन ( ताल्लुक़ात ) का खुदा ने हुक्म दिया है उनको क़ताआ कर देते हैं और मुल्क में फसाद करते फिरते हैं , यही लोग घाटा उठाने वाले हैं (27)

कै-फ़ तक्फुरू-न बिल्लाहि व कुन्तुम् अम्वातन् फ़-अह्याकुम् सुम्-म युमीतुकुम् सुम्-म युहूयीकुम् सुम्-म इलैहि तुर्जअून (28)
(हाँ) क्यों कर तुम खुदा का इन्कार कर सकते हो हालाँकि तुम ( माओं के पेट में ) बेजान थे तो उसी ने तुमको ज़िन्दा किया फिर वही तुमको मार डालेगा , फिर वही तुमको ( दोबारा क़यामत में ) ज़िन्दा करेगा फिर उसी की तरफ लौटाए जाओगे (28)

हुवल्लजी ख-ल-क लकुम् मा फ़िलअर्जि जमीअन् , सुम्मस्तवा इलस्समा-इ फ़-सव्वाहुन्-न सब्-अ समावातिन् , व-हु-व बिकुल्लि शैइन् अलीम (29)*
वही तो वह ( खुदा ) है जिसने तुम्हारे ( नफ़े ) के ज़मीन की कुल चीज़ों को पैदा किया फिर आसमान ( के बनाने ) की तरफ़ मुतावज्जेह हुआ तो सात आसमान हमवार (व मुसतहकम) बना दिए और वह ( खुदा ) हर चीज़ से (खूब) वाक़िफ है (29)

व इज् का-ल रब्बु-क लिल्मलाइ-कति इन्नी जाअिलुन् फिल्अर्जि ख़ली-फ़तन् , कालू अ-तज-अलु फ़ीहा मंय्युफ्सिदु फ़ीहा व यसफ़िकुद्दिमा-अ व नह्नु नुसब्बिहु बिहम्दि-क व नुकद्दिसु ल-क , का-ल इन्नी अअ्लमु माला तअ्लमून (30)
और ( ऐ रसूल ) उस वक्त को याद करो जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं ( अपना ) एक नाएब ज़मीन में बनानेवाला हूँ ( फरिश्ते ताज्जुब से ) कहने लगे क्या तू ज़मीन ऐसे शख्स को पैदा करेगा जो ज़मीन | में फ़साद और रेज़ियाँ करता फिरे हालाँकि ( अगर ) ख़लीफा बनाना है तो हमारा ज्यादा हक़ है ) क्योंकि हम तेरी तारीफ व तसबीह करते हैं और तेरी पाकीज़गी साबित करते हैं तब खुदा ने फरमाया इसमें तो शक ही नहीं कि जो मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते (30)

व अल्ल-म आ-दमल् अस्मा-अ कुल्लहा सुम्-म अ-र-ज़ हुम् अलल्-मलाइ-कति फ़का-ल अम्बिऊनी बिअस्मा-इ हा-उला-इ इन कुन्तुम सादिक़ीन (31)
और ( आदम की हक़ीक़म ज़ाहिर करने की ग़रज़ से ) आदम को सब चीज़ों के नाम सिखा दिए फिर उनको फरिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया कि अगर तुम अपने दावे में कि हम मुस्तहके ख़िलाफ़त हैं । सच्चे हो तो मुझे इन चीज़ों के नाम बताओ (31)

कालू सुब्हा-न-क ला-अिल-म-लना इल्ला मा अल्लम्तना इन्न-क अन्तल अलीमुल-हकीम (32)
तब फ़रिश्तों ने ( आजिज़ी से ) अर्ज़ की तू ( हर ऐब से ) पाक व पाकीज़ा है हम तो जो कुछ तूने बताया है उसके सिवा कुछ नहीं जानते तू बड़ा जानने वाला , मसलहतों का पहचानने वाला है (32)

का-ल याआदमु अमबिअ्हुम बिअस्मा-इहिम् फ-लम्मा अम्-ब-अहुम् बिअस्मा-इहिम् का-ल अलम् अकुल्लकुम् इन्नी अअ़लमु गैबस्समावाति वल्अर्ज़ि व अअ्लमु मा तुब्दू-न व मा कुन्तुम् तक्तुमून (33)
( उस वक्त ख़ुदा ने आदम को ) हुक्म दिया कि ऐ आदम तुम इन फ़रिश्तों को उन सब चीज़ों के नाम बता दो बस जब आदम ने फ़रिश्तों को उन चीज़ों के नाम बता दिए तो खुदा ने फरिश्तों की तरफ ख़िताब करके फरमाया क्यों , मैं तुमसे न कहता था कि मैं आसमानों और ज़मीनों के छिपे हुए राज़ को जानता हूँ , और जो कुछ तुम अब ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छिपाते थे ( वह सब ) जानता हूँ (33)

व इज् कुल्ना लिल्-मलाइ-कतिस्जुदू लिआ-द-म फ़-स-जदू इल्ला इब्लीस ,अबा वस्तक्ब-र व का-न मिनल्काफ़िरीन (34)
और ( उस वक्त क़ो याद करो ) जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गए मगर शैतान ने इन्कार किया और गुरूर में आ गया और काफ़िर हो गया (34)

व कुल्ना या आ-दमुस्कुन् अन्-त व जौजुकल-जन्न-त व कुला मिन्हा र-ग़दन हैसु शिअतुमा व ला तक्रबा हाज़िहिश् श-ज-र-त फ़-तकूना मिनज्-ज़ालिमीन (35)
और हमने आदम से कहा ऐ आदम तुम अपनी बीवी समैत बेहिश्त में रहा सहा करो और जहाँ से तुम्हारा जी चाहे उसमें से ब फराग़त खाओ ( पियो ) मगर उस दरख्त के पास भी न जाना ( वरना ) फिर तुम अपना आप नुक़सान करोगे (35)

फ-अज़ल-लहुमश्-शैतानु अन्हा फ-अख्र-जहुमा मिम्मा काना फीही व कुल-नहबितू बअजुकुम लिबअज़िन् अदुव्वुन् व लकुम् फिलअर्जि मुस्तकर्रूंव व मताअुन् इलाहीन (36)
तब शैतान ने आदम व हौव्वा को (धोखा देकर) वहाँ से डगमगाया और आख़िर कार उनको जिस ( ऐश व राहत ) में थे उनसे निकाल फेंका और हमने कहा ( ऐ आदम व हौव्वा ) तुम ( ज़मीन पर ) उतर पड़ो तुममें से एक का एक दुशमन होगा और ज़मीन में तुम्हारे लिए एक ख़ास वक्त ( क़यामत ) तक ठहराव और ठिकाना है (36)

फ़-त लक्का आदमु मिर्रब्बिही कलिमातिन् फ़ता-ब अलैहि , इन्नहू हुवत्तव्वाबुर्रहीम (37)
फिर आदम ने अपने परवरदिगार से ( माज़रत के चन्द अल्फाज़ ) सीखे पस खुदा ने उन अल्फाज़ की बरकत से आदम की तौबा कुबूल कर ली बेशक वह बड़ा माफ़ करने वाला मेहरबान है (37)

कुल्नहबितू मिन्हा जमीअन् फ़-इम्मा यअतियन्नकुम् मिन्नी हुदन फ़-मन् तबि-अ हुदा-या फला खौफुन अलैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून (38)
(और जब आदम को ) ये हुक्म दिया था कि यहाँ से उतर पड़ो ( तो भी कह दिया था कि ) अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से हिदायत आए तो ( उसकी पैरवी करना क्योंकि ) जो लोग मेरी हिदायत पर चलेंगे उन पर ( क़यामत ) में न कोई ख़ौफ होगा (38)

वल्लज़ी-न क-फरू व कज्जबू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून (39)*
और न वह रंजीदा होगे और ( ये भी याद रखो ) जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो वही जहन्नुमी हैं और हमेशा दोज़ख़ में पड़े रहेगे (39)

या बनी इस्राइलज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व औफू बि-अ़हदी ऊफि़ बि-अहदिकुम् व इय्या-य फरहबून (40)
ऐ बनी इसराईल ( याकूब की औलाद ) मेरे उन एहसानात को याद करो जो तुम पर पहले कर चुके हैं और तुम मेरे एहद व इक़रार ( ईमान ) को पूरा करो तो मैं तुम्हारे एहद ( सवाब ) को पूरा करूँगा , और मुझ ही से डरते रहो (40)

व आमिनू बिमा अन्ज़ल्तु मुसद्दिकल्लिमा म-अकुम् व ला तकूनू अव्व-ल काफ़िरिम् बिहि व ला तश्तरू बिआयाती स्-म-नन् कलीलंव व इय्या-य फत्तकून (41)
और जो ( कुरान ) मैंने नाज़िल किया वह उस किताब ( तौरेत ) की ( भी ) तसदीक़ करता हूँ जो तुम्हारे पास है और तुम सबसे चले उसके इन्कार पर मौजूद न हो जाओ और मेरी आयतों के बदले थोड़ी क़ीमत ( दुनयावी फायदा ) न लो और मुझ ही से डरते रहो (41)

वला तल्बिसुल-हक्-क बिल्बातिलि व तक्तुमुल्हक्-क व अन्तुम् तअलमून (42)
और हक़ को बातिल के साथ न मिलाओ और हक़ बात को न छिपाओ हालाँकि तुम जानते हो और पाबन्दी से नमाज़ अदा करो (42)

व अकीमुस्सला-त व आतुज्जका-त वर्-कअू म-अर्राकिअीन (43)
और ज़कात दिया करो और जो लोग ( हमारे सामने ) इबादत के लिए झुकते हैं उनके साथ तुम भी झुका करो (43)

अ-तअ्मुरूनन्ना-स बिल्बिर्रि वतन्सौ-न अन्फुसकुम् व अन्तुम् तत्लूनल-किता-ब , अ-फला तअ्किलून (44)
और तुम लोगों से नेकी करने को कहते हो और अपनी ख़बर नहीं लेते हालाँकि तुम किताबे खुदा को बराबर रटा करते हो तो तुम क्या इतना भी नहीं समझते (44)

वस्तअीनू बिस्सबरि वस्सलाति , व इन्नहा ल-कबी-रतुन् इल्ला अलल-ख़ाशिअीन (45)
और ( मुसीबत के वक्त ) सब्र और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलबत्ता नमाज़ दूभर तो है मगर उन ख़ाक़सारों पर ( नहीं ) जो बखूबी जानते हैं (45)

अल्लज़ी-न यजुन्नू-न अन्नहुम-मुलाकू रब्बिहिम् व अन्नहुम् इलैहि राजिअून •(46)*
कि वह अपने परवरदिगार की बारगाह में हाज़िर होंगे और ज़रूर उसकी तरफ लौट जाएँगे (46)

या बनी इस्राईलज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व अन्नी फज्जल्तुकुम् अलल् आलमीन (47)
ऐ बनी इसराइल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंने पहले तुम्हें दी और ये ( भी तो सोचो ) कि हमने तुमको सारे जहान के लोगों से बढ़ा दिया (47)

वत्तकू यौमल्ला तज्ज़ी नफ्सुन् अन्नफ्सिन् शैअंव व ला युक्बलु मिन्हा शफ़ा-अतुंव – व ला युअ्-खजु मिन्हा अद्लुंव व ला हुम् युन्सरून (48)
और उस दिन से डरो ( जिस दिन ) कोई शख्स किसी की तरफ से न फिदिया हो सकेगा और न उसकी तरफ से कोई सिफारिश मानी जाएगी और न उसका कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न वह मदद पहुँचाए जाएंगे (48)

व इज नज्जैनाकुम मिन् आलि फिरऔ-न यसूमू-नकुम् सूअल-अज़ाबि युज़ब्बिहू-न अब्ना-अकुम् व यस्तह्यू-न निसा-अकुम् व फी जालिकुम बलाउम् मिर्रब्बिकुम् अ़जी़म (49)
और ( उस वक्त को याद करो ) जब हमने तुम्हें ( तुम्हारे बुर्ज़गो को ) फिरऔन ( के पन्जे ) से छुड़ाया जो तुम्हें बड़े – बड़े दुख दे के सताते थे तुम्हारे लड़कों पर छुरी फेरते थे और तुम्हारी औरतों को ( अपनी ख़िदमत के लिए ) ज़िन्दा रहने देते थे और उसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से ( तुम्हारे सब्र की ) सख्त आज़माइश थी (49)

व इज् फ़-रक्ना बिकुमुल्-बह्-र फ़-अन्जैनाकुम् व अग्-रक्ना आ-ल फ़िरऔ-न व अन्तुम् तन्जुरून (50)
और (वह वक्त भी याद करो) जब हमने तुम्हारे लिए दरिया को टुकड़े – टुकड़े किया फिर हमने तुमको छुटकारा दिया (50)

व इज् वाअ़दना मूसा अर्-बअी़-न लै-लतन् सुम्मत्तखज्तुमुल्-अिज्-ल मिम्-बअ्दिही व अन्तुम् ज़ालिमून (51)
और फिरऔन के आदमियों को तुम्हारे देखते – देखते डुबो दिया और ( वह वक्त भी याद करो ) जब हमने मूसा से चालीस रातों का वायदा किया था और तुम लोगों ने उनके जाने के बाद एक बछड़े को ( परसतिश के लिए खुदा ) बना लिया (51)

सुम्-म अ़फौना अ़न्कुम मिम्-बअदि ज़ालि-क लअल्लकुम् तश्कुरून (52)
हालाँकि तुम अपने ऊपर जुल्म जोत रहे थे फिर हमने उसके बाद भी दरगुज़र की ताकि तुम शुक्र करो (52)

व इज् आतैना मूसल-किता-ब वल्फुरका-न लअल्लकुम् तह्तदून (53)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब मूसा को ( तौरेत ) अता की और हक़ और बातिल को जुदा करनेवाला क़ानून ( इनायत किया ) ताके तुम हिदायत पाओ (53)

व इज् का-ल मूसा लिक़ौमिही या कौमि इन्नकुम् ज़-लम्तुम अन्फु-सकुम् बित्तिख़ाज़िकुमुल्-अिज्-ल फ़तूबू इला बारिइकुम् फक्-तुलू अन्फु-स-कुम् , जा़लिकुम् खैरूल्लकुम् अिन्-द बारिइकुम् , फ़ता – ब अलैकुम इन्नहू हुवत्तव्वाबुर्रहीम (54)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ मेरी क़ौम तुमने बछड़े को ( ख़ुदा ) बना के अपने ऊपर बड़ा सख्त जुल्म किया तो अब ( इसके सिवा कोई चारा नहीं कि ) तुम अपने ख़ालिक की बारगाह में तौबा करो और वह ये है कि अपने को क़त्ल कर डालो तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है , फिर जब तुमने ऐसा किया तो खुदा ने तुम्हारी तौबा कुबूल कर ली बेशक वह बड़ा मेहरबान माफ़ करने वाला है (54)

व इज् कुल्तुम् या मूसा लन्-नुअ्-मिन-ल-क हत्ता नरल्ला-ह जह्-रतन् फ़-अ खज़त्कुमुस्साअि-कतु व अन्तुम् तन्जु़रून (55)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब तुमने मूसा से कहा था कि ऐ मूसा हम तुम पर उस वक्त तक ईमान न लाएंगे जब तक हम खुदा को ज़ाहिर बज़ाहिर न देख ले उस पर तुम्हें बिजली ने ले डाला , और तुम तकते ही रह गए (55)

सुम्-म बअस्नाकुम् मिम्-बअ्दि मौतिकुम् लअ़ल्लकुम् तश्कुरून (56)
फिर तुम्हें तुम्हारे मरने के बाद हमने जिला उठाया ताकि तुम शुक्र करो (56)

व जल्लल्ना अलैकुमुल्-ग़मा-म व अन्ज़ल्ना अलैकुमुल्मन्-न वस्सल्वा , कुलू मिन् तय्यिबाति मा रज़क्नाकुम् , व मा ज़-लमूना व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज्लिमून (57)
और हमने तुम पर अब्र का साया किया और तुम पर मन व सलवा उतारा और ( ये भी तो कह दिया था कि ) जो सुथरी व नफीस रोज़िया तुम्हें दी हैं उन्हें शौक़ से खाओ , और उन लोगों ने हमारा तो कुछ बिगड़ा नहीं मगर अपनी जानों पर सितम ढाते रहे (57)

व इज् कुल्नद्ख़ुलू हाज़िहिल् कर-य-त
फकुलू मिन्हा हैसू शिअ्तुम र-गदंव वद्खुलुल-बा-ब सुज्जदंव व-कूलू हित्ततुन् नगफिर लकुम ख़तायाकुम् , व स-नज़ीदुल् मुह्सिनीन (58)

और ( वह वक्त भी याद करो ) जब हमने तुमसे कहा कि इस गाँव ( अरीहा ) में जाओ और इसमें जहाँ चाहो फराग़त से खाओ ( पियो ) और दरवाज़े पर सजदा करते हुए और ज़बान से हित्ता बख्शिश कहते हुए आओ तो हम तुम्हारी ख़ता ये बख्श देगे और हम नेकी करने वालों की नेकी ( सवाब ) बढ़ा देगें (58)

फ-बद्-दल्-लज़ी-न ज़-लमू कौलन् गैरल्लज़ी की-ल लहुम् फ़-अन्ज़ल्ना अलल्लज़ी-न ज़लमू रिज्ज़म् – मिनस्-समा-इ बिमा कानू यफ्सुकून (59)*
तो जो बात उनसे कही गई थी उसे शरीरों ने बदलकर दूसरी बात कहनी शुरू कर दी तब हमने उन लोगों पर जिन्होंने शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह से आसमानी बला नाज़िल की (59)

व इज़िस्तस्का मूसा लिक़ौमिही फ़-कुल्नजरिब् बिअसाकल् ह-ज-र , फ़न्-फ़-जरत् मिन्हुस्-नता अश्र-त अैनन् , कद् अलि-म कुल्लु उनासिम् मश्र-बहुम् , कुलू वश्रबू मिर्रिज़किल्लाहि व ला तअ्सौ फिलअर्ज़ि मुफ्सिदीन (60)
और ( वह वक्त भी याद करो ) जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी माँगा तो हमने कहा ( ऐ मूसा ) अपनी लाठी पत्थर पर मारो ( लाठी मारते ही ) उसमें से बारह चश्में फट निकले और सब लोगों ने अपना – अपना घाट बखूबी जान लिया और हमने आम इजाज़त दे दी कि खुदा की दी हुईरोज़ी से खाओ पियो और मुल्क में फसाद न करते फिरो (60)

व इज् कुल्तुम् या मूसा लन्-नस्बि-र अला तआमिव्वाहिदिन् फ़द्अु लना रब्ब-क युख्रिज् लना मिम्मा तुम्बितुल अर्जु मिम्-बक्लिहा व किस्सा-इहा व फूमिहा व अ-द सिहा व ब-स-लिहा , का-ल अ-तस्तब्दिलूनल्लज़ी हु-व अद्ना बिल्लज़ी हु-व खैरून , इह्बितू मिस्रन् फ़-इन्-न लकुम मा सअल्तुम , व जुरिबत् अलैहिमुज्ज़िल्लतु वल्मस्-क-नतु व बाऊ बि-ग़-ज़-बिम् – मिनल्लाहि ,जालि-क बिअन्न-हुम् कानू यक्फुरू-न बिआयातिल्लाहि व यक्तुलूनन्-नबिय्यी-न बिगैरिल हक्कि , ज़ालि-क बिमा असव् वकानू यअतदून (61)*
(और वह वक्त भी याद करो) जब तुमने मूसा से कहा कि ऐ मूसा हमसे एक ही खाने पर न रहा जाएगा तो आप हमारे लिए अपने परवरदिगार से दुआ कीजिए कि जो चीज़े ज़मीन से उगती है जैसे साग पात तरकारी और ककड़ी और गेहूँ या ( लहसुन ) और मसूर और प्याज़ ( मन व सलवा ) की जगह पैदा करें ( मूसा ने ) कहा क्या तुम ऐसी चीज़ को जो हर तरह से बेहतर है अदना चीज़ से बदलन चाहते हो तो किसी शहर में उतर पड़ो फिर तुम्हारे लिए जो तुमने माँगा है सब मौजूद है और उन पर रूसवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोगों ने क़हरे खुदा की तरफ पलटा खाया , ये सब इस सबब से हुआ कि वह लोग खुदा की निशानियों से इन्कार करते थे और पैग़म्बरों को नाहक शहीद करते थे , और इस वजह से ( भी ) कि वह नाफ़रमानी और सरकशी किया करते थे (61)

इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हादू वन्नसारा वस्साबिईन मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आखिरि व अमि-ल सालिहन् फ़-लहुम् अजरुहुम अिन्-द रब्बिहिम वला खौफुन् अलैहिम वला हुम् यह्ज़नून (62)
बेशक मुसलमानों और यहूदियों और नसरानियों और ला मज़हबों में से जो कोई खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए और अच्छे – अच्छे काम करता रहे तो उन्हीं के लिए उनका अज्र व सवाब उनके खुदा के पास है और न ( क़यामत में ) उन पर किसी का ख़ौफ होगा न वह रंजीदा दिल होंगे (62)

व इज् अखज्ना मीसा-ककुम् व र-फअ्ना फौ-ककुमुत्तू-र खुजू मा आतैनाकुम् बिकुव्वातिंव्वज्कुरू मा फीहि लअल्लकुम् तत्तकून (63)
और ( वह वक्त याद करो ) जब हमने ( तामीले तौरेत ) का तुमसे एक़रार कर लिया और हमने तुम्हारे सर पर तूर से ( पहाड़ को ) लाकर लटकाया और कह दिया कि तौरेत जो हमने तुमको दी है उसको मज़बूत पकड़े रहो और जो कुछ उसमें है उसको याद रखो (63)

सुम्-म तवल्लैतुम् मिम्-बअ्दि ज़ालि-क फलौला फज्लुल्लाहि अलैकुम् व रहमतुहू लकुन्तुम् मिनल ख़ासिरीन (64)
ताकि तुम परहेज़गार बनो फिर उसके बाद तुम ( अपने एहदो पैमान से ) फिर गए पस अगर तुम पर खुदा का फज़ल और उसकी मेहरबानी न होती तो तुमने सख्त घाटा उठाया होता (64)

व लकद् अलिम्तुमुल्लज़ीनअ्-तदौ मिन्कुम् फिस्सब्ति फ़कुल्ना लहुम् कूनू कि-र-दतन् खासिईन (65)
और अपनी क़ौम से उन लोगों की हालत तो तुम बखूबी जानते हो जो शम्बे ( सनीचर ) के दिन अपनी हद से गुज़र गए ( कि बावजूद मुमानिअत शिकार खेलने निकले ) तो हमने उन से कहा कि तुम राइन्दे गए बन्दर बन जाओ ( और वह बन्दर हो गए ) (65)

फ-जअल्नाहा नकालल्-लिमा बै-न यदैहा व मा ख़ल्फहा व मौअि-जतल् लिल्मुत्तकीन (66)
पस हमने इस वाक़ये से उन लोगों के वास्ते जिन के सामने हुआ था और जो उसके बाद आनेवाले थे अज़ाब क़रार दिया , और परहेज़गारों के लिए नसीहत (66)

व इज् का-ल मूसा लिकौमिही इन्नल्ला-ह यअ्मुरूकुम् अन् तज़्बहू ब-क-रतन् , कालू अ-तत्तखिजुना हुजुवन् , का-ल अअूजु बिल्लाहि अन् अकू-न मिनल्जाहिलीन (67)
और ( वह वक्त याद करो ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि खुदा तुम लोगों को ताकीदी हुक्म करता है कि तुम एक गाय ज़िबाह करो वह लोग कहने लगे क्या तुम हमसे दिल्लगी करते हो मूसा ने कहा मैं खुदा से पनाह माँगता हूँ कि मैं जाहिल बनूँ (67)

कालुद् अु-लना रब्ब-क युबय्यिल्लना मा हि-य का-ल इन्नहू यकूलु इन्नहा ब-क-रतुल्ला-फ़ारिजुंव् वला बिकरून् , अवानुम् , बै-न ज़ालि-क , फ़फ्अलू मा तुअमरून (68)
( तब वह लोग कहने लगे कि ( अच्छा ) तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें बता दे कि वह गाय कैसी हो मूसा ने कहा बेशक खुदा ने फरमाता है कि वह गाय न तो बहुत बढी हो और न बछिया बल्कि उनमें से औसत दरजे की हो , ग़रज़ जो तुमको हुक्म दिया गया उसको बजा लाओ (68)

कालुद् अु-लना रब्ब-क युबय्यिल्लना मा लौनुहा , का-ल इन्नहू यकूलु इन्नहा ब-क-रतुन् सफ़रा-उ फ़ाकिअुल लौनुहा
तसुर्रुन्नाज़िरीन (69)

वह कहने लगे ( वाह ) तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें ये बता दे कि उसका रंग आख़िर क्या हो मूसा ने कहा बेशक खुदा फरमाता है कि वह गाय खूब गहरे ज़र्द रंग की हो देखने वाले उसे देखकर खुश हो जाए (69)

कालुद् अु-लना रब्ब-क युबय्यिल्लना मा हि-य इन्नल ब-क-र तशा-ब-ह अलैना , व इन्ना इन्श-अल्लाहु लमुह्तदून (70)
तब कहने लगे कि तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें ज़रा ये तो बता दे कि वह ( गाय ) और कैसी हो ( वह ) गाय तो और गायों में मिल जुल गई और खुदा ने चाहा तो हम ज़रूर ( उसका ) पता लगा लेगे (70)

का-ल इन्नहू यकूलु इन्नहा ब-क-रतुल् ला ज़लूलुन् तुसीरूल्-अर्-ज़ वला तस्किल्-हर-स मुसल्-ल-म-तुल्लाशिय-त फ़ीहा , कालुल्आ-न जिअ्-त बिल्हक्कि , फ़-ज़-बहूहा वमा कादू यफ्अलून (71)*
मूसा ने कहा खुदा ज़रूर फरमाता है कि वह गाय न तो इतनी सधाई हो कि ज़मीन जोते न खेती सीचे भली चंगी एक रंग की कि उसमें कोई धब्बा तक न हो , वह बोले अब ( जा के ) ठीक – ठीक बयान किया , ग़रज़ उन लोगों ने वह गाय हलाल की हालाँकि उनसे उम्मीद न थी वह कि वह ऐसा करेंगे (71)

व इज् कतल्तुम् नफ्सन् फ़द्दा-रअ्तुम् फ़ीहा , वल्लाहु मुख्रिजुम् मा कुन्तुम् तक्तुमून (72)
और जब एक शख्स को मार डाला और तुममें उसकी बाबत फूट पड़ गई एक दूसरे को क़ातिल बताने लगा जो तुम छिपाते थे (72)

फ़-कुल्नज्रिबूहु बि-बअ्ज़िहा , कज़ालि-क युह्यिल्लाहुल-मौता व युरीकुम् आयातिही लअल्लकुम् तअ्किलून (73)
खुदा को उसका ज़ाहिर करना मंजूर था पस हमने कहा कि उस गाय को कोई टुकड़ा लेकर इस ( की लाश ) पर मारो यूँ खुदा मुर्दे को ज़िन्दा करता है और तुम को अपनी कुदरत की निशानियाँ दिखा देता है (73)

सुम्-म क़सत् कुलूबुकुम् मिम्-बअ्दि जालि-क फहि-य कलहिजा-रति औ अशद्दू कस्वतन् , व इन्-न मिनल-हिजारति लमा य-तफज्जरू मिन्हुल-अन्हारू , व इन्-न मिन्हा लमा यश्शक्ककु फ़-यख् रूजु मिन्हुल्मा-उ , व इन्-न मिन्हा लमा यहबितु मिन् ख़श्यतिल्लाहि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (74)
ताकि तुम समझो फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख्त हो गये पस वह मिसल पत्थर के ( सख्त ) थे या उससे भी ज्यादा करख्त क्योंकि पत्थरों में बाज़ तो ऐसे होते हैं कि उनसे नहरें जारी हो जाती हैं और बाज़ ऐसे होते हैं कि उनमें दरार पड़ जाती है और उनमें से पानी निकल पड़ता है और बाज़ पत्थर तो ऐसे होते हैं कि खुदा के ख़ौफ से गिर पड़ते हैं और जो कुछ तुम कर रहे हो उससे खुदा ग़ाफिल नहीं है (74)

अ-फ़-तत्मअू-न अंय्युअ्मिनू लकुम् व कद् का-न फ़रीकुम् मिन्हुम् यस्मअू-न कलामल्लाहि सुम्-म युहर्रिफूनहू मिम्-बअ्दि मा अ-क-लूहु व हुम् यअ्लमून (75)
( मुसलमानों ) क्या तुम ये लालच रखते हो कि वह तुम्हारा ( सा ) ईमान लाएँगें हालाँकि उनमें का एक गिरोह ( साबिक़ में ) ऐसा था कि खुदा का कलाम सुनाता था और अच्छी तरह समझने के बाद उलट फेर कर देता था हालाँकि वह खूब जानते थे और जब उन लोगों से मुलाक़ात करते हैं (75)

व इज़ा लकुल्लज़ी-न आमनू कालू आमन्ना व इज़ा ख़ला बअ्जुहुम् इला बअ्जिन् कालूं अतुह्द्दिसू नहुम् बिमा फ़-तहल्लाहु अलैकुम् लियुहाज्जूकुम् बिही अिन्-द रब्बिकुम , अ-फ़ला तअ्किलून (76)
जो ईमान लाए तो कह देते हैं कि हम तो ईमान ला चके और जब उनसे बाज़ – बाज़ के साथ तख़िलया करते हैं तो कहते हैं कि जो कुछ खुदा ने तुम पर ( तौरेत ) में ज़ाहिर कर दिया है क्या तुम ( मुसलमानों को ) बता दोगे ताकि उसके सबब से कल तुम्हारे खुदा के पास तुम पर हुज्जत लाएँ क्या तुम इतना भी नहीं समझते (76)

अ-वला यअ्लमू-न अन्नल्ला-ह यअलमु मा युसिर्रू-न वमा युअलिनून (77)
लेकिन क्या वह लोग ( इतना भी ) नहीं जानते कि वह लोग जो कुछ छिपाते हैं या ज़ाहिर करते हैं खुदा सब कुछ जानता है (77)

व मिन्हुम् उम्मिय्यू-न ला यअ्लमूनल किता-ब इल्ला अमानिय्-य व इन हुम् इल्ला यजुन्नून • (78)
और कुछ उनमें से ऐसे अनपढ़ हैं कि वह किताबे खुदा को अपने मतलब की बातों के सिवा कुछ नहीं समझते और वह फक़त ख्याली बातें किया करते हैं (78)

फ वै लुल-लिल्लजी-न यक्तुबूनल-किता-ब बिऐदीहिम , सुम्-म यकूलू-न हाज़ा मिन् अिन्दिल्लाहि लियश्तरू बिही स-म-नन् कलीलन् , फवैलुल्लहुम् मिम्मा क-त-बत् ऐदीहिम व वैलुल्लहुम् मिम्मा यक्सिबून (79)
पस वाए हो उन लोगों पर जो अपने हाथ से किताब लिखते हैं फिर ( लोगों से कहते फिरते ) हैं कि ये खुदा के यहाँ से ( आई ) है ताकि उसके ज़रिये से थोड़ी सी क़ीमत ( दुनयावी फ़ायदा ) हासिल करें पस अफसोस है उन पर कि उनके हाथों ने लिखा और फिर अफसोस है उनपर कि वह ऐसी कमाई करते हैं (79)

व कालू लन् तमस्स-नन्नारू इल्ला अय्यामम् मअदू-दतन् , कुल अत्तखज्तुम् अिन्दल्लाहि अहदन फ़-लंय्-युख्लिफ़ल्लाहु अह्दहू अम् तकूलू-न अलल्लाहि मा ला तअ्लमून (80)
और कहते हैं कि गिनती के चन्द दिनों के सिवा हमें आग छुएगी भी तो नहीं ( ऐ रसूल ) इन लोगों से कहो कि क्या तुमने खुदा से कोई इक़रार ले लिया है कि फिर वह किसी तरह अपने इक़रार के ख़िलाफ़ हरगिज़ न करेगा या बे समझे बूझे खुदा पर बोहताव जोड़ते हो (80)

बला मन् क-स-ब सय्यि-अतंव-व अहातत् बिही खतीअतु हू फ़-उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून (81)
हाँ ( सच तो यह है ) कि जिसने बुराई हासिल की और उसके गुनाहों ने चारों तरफ से उसे घेर लिया है वही लोग तो दोज़ख़ी हैं और वही ( तो ) उसमें हमेशा रहेंगे (81)

वल्लजी-न आमनू व आमिलुस्सालिहाति उलाइ-क अस्हाबुल-जन्नति हुम् फ़ीम ख़ालिदून (82)*
और जो लोग ईमानदार हैं और उन्होंने अच्छे काम किए हैं वही लोग जन्नती हैं कि हमेशा जन्नत में रहेंगे (82)

व इज् अख़ज्ना मीसा-क बनी इस्-राई-ल ला तअबुदू-न इल्लल्ला-ह , व बिल्वालिदैनि इहसानंव वज़िल्कुरबा वल्यतामा वल्मसाकीनि व कूलू लिन्नासि हुस्नंव व-अकीमुस्सला-त व आतुज्ज़का-त , सुम्-म तवल्लैतुम् इल्ला क़लीलम्-मिन्कुम् व अन्तुम् मुअ्रिजून (83)
और ( वह वक्त याद करो ) जब हमने बनी ईसराइल से ( जो तुम्हारे बुर्जुग़ थे ) अहद व पैमान लिया था कि खदा के सिवा किसी की इबादत न करना और माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजों के साथ अच्छे सुलूक करना और लोगों के साथ अच्छी तरह ( नरमी ) से बातें करना और बराबर नमाज़ पढना और ज़कात देना । फिर तुममें से थोड़े आदिमियों के सिवा ( सब के सब ) फिर गए और तुम लोग हो ही इक़रार से मुँह फेरने वाले (83)

व इज् अख़ज्ना मीसा-ककुम्-ला तस्फिकू-न दिमा-अकुम् व ला तुख्रिजू-न अन्फु-सकुम् मिन् दियारिकुम् सुम्-म अक्ररतुम् व अन्तुम तश्हदून (84)
और ( वह वक्त याद करो ) जब हमने तुम ( तुम्हारे बुर्जुगों ) से अहद लिया था कि आपस में खूरेज़ियाँ न करना और न अपने लोगों को शहर बदर करना तो तुम ( तुम्हारे बुर्जुगों ) ने इक़रार किया था और तुम भी उसकी गवाही देते हो (84)

सुम्-म अन्तुम् हा-उला-इ तक्तुलू-न अन्फु-सकुम् व तुख्रिजू-न फरीकम् मिन्कुम् मिन् दियारिहिम तज़ाहरू-न अलैहिम बिल्इस्मि वल्-अुद्वानि , व इंय्यअ्तूकुम् उसारा तुफादूहुम व हु-व मुहर्रमुन् अलैकुम् इख्राजुहुम , अ-फ़-तुअ्मिनू-न बिबअ्ज़िल-किताबि व तक्फुरू-न बिबअ्ज़िन् फ़मा जज़ा-उ मंय्यफ्अलु ज़ालि-क मिन्कुम् इल्ला खिज्युन् फ़िल्हयातिद्दुन्या व यौमलकियामति युरद्दू-न इला अशद्दिल-अज़ाबि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (85)
( कि हाँ ऐसा हुआ था ) फिर वही लोग तो तुम हो कि आपस में एक दूसरे को क़त्ल करते हो और अपनों से एक जत्थे के नाहक़ और ज़बरदस्ती हिमायती बनकर दूसरे को शहर बदर करते हो ( और लुत्फ़ तो ये है कि ) अगर वही लोग कैदी बनकर तम्हारे पास ( मदद माँगने ) आए तो उनको तावान देकर छडा लेते हो हालाँकि उनका निकालना ही तुम पर हराम किया गया था तो फिर क्या । तुम ( किताबे खुदा की ) बाज़ बातों पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार करते हो पस तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि ज़िन्दगी भर की रूसवाई हो और ( आख़िरकार ) क़यामत के दिन सख्त अज़ाब की तरफ लौटा दिये जाए और जो कुछ तुम लोग करते हो खुदा उससे ग़ाफ़िल नहीं है (85)

उला-इ-कल्लजीनश-त-र वुल्हयातद्दुन्या बिल्आख़िरति फ़ला युखफ्फफु अन्हुमुल अज़ाबु व ला हुम् युन्सरून (86)*
यही वह लोग हैं जिन्होंने आखेरत के बदले दुनिया की ज़िन्दगी ख़रीद पस न उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ ( कमी ) की जाएगी और न वह लोग किसी तरह की मदद दिए जाएँगे (86)

व लक़द् आतैना मूसल् किता-ब व कफ्फ़ैना मिम्-बअदिही बिर्रूसुलि व आतैना अीसब्-न मर्यमल्बय्यिनाति व अय्यद्नाहु बिरूहिल्कुदुसि , अ-फकुल्लमा जाअकुम् रसूलुम बिमा ला तहवा अन्फुसुकुमुस्तक्बरतुम् फ़-फरीकन् कज्जब्तुम् व फरीकन् तक्तुलून (87)
और ये हक़ीक़ी बात है कि हमने मूसा को किताब ( तौरेत ) दी और उनके बाद बहुत से पैग़म्बरों को उनके क़दम ब क़दम ले चलें और मरियम के बेटे ईसा को ( भी बहुत से ) वाजेए व रौशन मौजिजे दिए और पाक रूह जिबरील के ज़रिये से उनकी मदद की क्या तुम उस क़दर बददिमाग़ हो गए हो कि जब कोई पैग़म्बर तुम्हारे पास तुम्हारी ख्वाहिशे नफ़सानी के खिलाफ कोई हुक्म लेकर आया तो तुम अकड़ बैठे फिर तुमने बाज़ पैग़म्बरों को तो झुठलाया और बाज़ को जान से मार डाला (87)

व कालू कुलूबुना गुल्फुन् , बल ल-अ नहुमुल्लाहु बिकुफ्रिहिम फ़-कलीलम्मा युअमिनून (88)
और कहने लगे कि हमारे दिलों पर ग़िलाफ चढ़ा हुआ है ( ऐसा नहीं ) बल्कि उनके कुफ्र की वजह से खुदा ने उनपर लानत की है पस कम ही लोग ईमान लाते हैं (88)

व लम्मा जाअहुम् किताबुम् मिन् अिन्दिल्लाहि
मुसद्दिकुल्लिमा म-अहुम् व कानू मिन् कब्लु यस्तफ़्तिहू-न अलल्लजी-न क-फरू , फ़-लम्मा जा-अहुम् मा अ-रफू क-फ-रू बिही फ़-लअ्नतुल्लाहि अलल्-काफिरीन (89)

और जब उनके पास खदा की तरफ़ से किताब ( कुरान आई और वह उस किताब तौरेत ) की जो उन के पास तसदीक़ भी करती है । और उससे पहले ( इसकी उम्मीद पर ) काफ़िरों पर फतेहयाब होने की दुआएँ माँगते थे पस जब उनके पास वह चीज़ जिसे पहचानते थे आ गई तो लगे इन्कार करने पस काफ़िरों पर खुदा की लानत है (89)

बिअ-स-मश्तरौ बिही अन्फु-सहुम् अंय्यक्फुरू बिमा अन्जलल्लाहु बग्यन् अंय्युनज्जिलल्लाहु मिन् फ़ज्लिही अला मंय्यशा-उ-मिन् अिबादिही फ़-बाऊ बि-ग़-ज़-बिन् अला ग़-ज़-बिन् , व लिल्काफ़िरी-न अजाबुम् मुहीन (90)
क्या ही बुरा है वह काम जिसके मुक़ाबले में ( इतनी बात पर ) वह लोग अपनी जानें बेच बैठे हैं कि खुदा अपने बन्दों से जिस पर चाहे अपनी इनायत से किताब नाज़िल किया करे इस रश्क से जो कुछ खुदा ने नाज़िल किया है सबका इन्कार कर बैठे पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टूट पड़ा और काफ़िरों के लिए ( बड़ी ) रूसवाई का अज़ाब है (90)

व इज़ा की-ल लहुम् आमिनू बिमा अन्जलल्लाहु कालू नुअमिनु बिमा उन्ज़ि-ल अलैना व यक्फुरू-न बिमा वरा-अहू , व हुवल-हक्कु मुसद्दिकल्-लिमा म-अहुम , कुल फ़लि-म तक्तुलू-न अम्बिया-अल्लाहि मिन् कब्लु इन् कुन्तुम् मुअमिनीन (91)
और जब उनसे कहा गया कि ( जो कुरान ) खुदा ने नाज़िल किया है उस पर ईमान लाओ तो कहने लगे कि हम तो उसी किताब ( तौरेत ) पर ईमान लाए हैं जो हम पर नाज़िल की गई थी और उस किताब ( कुरान ) को जो उसके बाद आई है नहीं मानते हैं हालाँकि वह ( कुरान ) हक़ है और उस किताब ( तौरेत ) की जो उनके पास है तसदीक़ भी करती है मगर उस किताब कुरान का जो उसके बाद आई है इन्कार करते हैं ( ऐ रसूल ) उनसे ये तो पूछो कि तुम ( तुम्हारे बुर्जुग़ ) अगर ईमानदार थे तो फिर क्यों खुदा के पैग़म्बरों का साबिक़ क़त्ल करते थे (91)

व लक़द् जाअकुम् मूसा बिल-बय्यिनाति सुम्मत्तखज्तुमुल-अिज्-ल मिम्-बअ्दिही व अन्तुम् ज़ालिमून (92)
और तुम्हारे पास मूसा तो वाजेए व रौशन मौजिज़े लेकर आ ही चुके थे फिर भी तुमने उनके बाद बछड़े को खुदा बना ही लिया और उससे तुम अपने ही ऊपर जुल्म करने वाले थे (92)

व इज् अखज्ना मीसा-ककुम् व र-फ़अ्ना फ़ौ-ककुमुत्-तू-र ,खु़जू मा आतैनाकुम् बिकुव्वतिंव्-वस्मअू कालू समिअ्ना व असैना व उश्रिबू फ़ी कुलूबिहिमुल्-अिज्-ल बिकुफ्रिहिम , कुल् बिअ्समा यअ्मुरूकुम् बिही ईमानुकुम इन् कुनतुम् मुअ्मिनीन (93)
और ( वह वक्त याद करो ) जब हमने तुमसे अहद लिया और ( कोहे ) तूर को ( तुम्हारी उदूले हुक्मी से ) तुम्हारे सर पर लटकाया और ( हमने कहा कि ये किताब तौरेत ) जो हमने दी है मज़बूती से लिए रहो और ( जो कुछ उसमें है ) सुनो तो कहने लगे सुना तो ( सही लेकिन ) हम इसको मानते नहीं और उनकी बेईमानी की वजह से ( गोया ) बछड़े की उलफ़त घोल के उनके दिलों में पिला दी गई ( ऐ रसूल ) उन लोगों से कह दो कि अगर तुम ईमानदार थे तो तुमको तुम्हारा ईमान क्या ही बुरा हुक्म करता था (93)

कुल इन्-कानत् लकुमुद्-दारूल्-आख़िरतु अिन्दल्लाहि खालि-सतम् मिन् दुनिन्नासि फ-तमन्नवुल्मौ-त इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (94)
( ऐ रसूल ) इन लोगों से कह दो कि अगर खुदा के नज़दीक आख़रत का घर ( बेहिश्त ) ख़ास तुम्हारे वास्ते है और लोगों के वासते नहीं है पस अगर तुम सच्चे हो तो मौत की आरजू क़रो (94)

व लंय्य-तमन्नौहु अ-बदम् बिमा कद्द-मत् ऐदीहिम , वल्लाहु अलीमुम् बिज्जालिमीन (95)
( ताकि जल्दी बेहिश्त में जाओ ) लेकिन वह उन आमाले बद की वजह से जिनको उनके हाथों ने पहले से आगे भेजा है हरगिज़ मौत की आरजू न करेंगे और खुदा ज़ालिमों से खूब वाक़िफ है (95)

व ल-तजिदन्नहुम् अहरसन्नासि अला हयातिन् , व मिनल्लज़ी-न अश्रकू यवद्दु अ-हदुहुम् लौ युअम्मरू अल्-फ़ स-नतिन् , वमा हु-व बिमुज़हज़िहिही मिनल-अज़ाबि अंय्युअम्म-र , वल्लाहु बसीरूम् बिमा यअमलून (96)*
और ( ऐ रसूल ) तुम उन ही को ज़िन्दगी का सबसे ज्यादा हरीस पाओगे और मुशरिक़ों में से हर एक शख्स चाहता है कि काश उसको हज़ार बरस की उम्र दी जाती हालाँकि अगर इतनी तूलानी उम्र भी दी जाए तो वह ख़ुदा के अज़ाब से छुटकारा देने वाली नहीं , और जो कुछ वह लोग करते हैं खुदा उसे देख रहा है ” (96)

कुल मन् का-न अदुव्वल्लिजिब्री-ल फ़-इन्नहू नज्ज-लहू अला कल्बि-क बि-इज्निल्लाहि मुसद्दिकल्लिमा बै-न यदैहि व हुदंव् व बुश्रा लिल्-मुअ्मिनीन (97)
( ऐ रसूल उन लोगों से ) कह दो कि जो जिबरील का दुशमन है ( उसका खुदा दुशमन है ) क्योंकि उस फ़रिश्ते ने खुदा के हुक्म से ( इस कुरान को ) तुम्हारे दिल पर डाला है और वह उन किताबों की भी तसदीक करता है जो ( पहले नाज़िल हो चुकी हैं और सब ) उसके सामने मौजूद हैं और ईमानदारों के वास्ते खुशखबरी है (97)

मन् का-न अदुव्वल्लिल्लाहि व मला-इ-कतिही व रूसुलिही व जिब्री-ल व मीका-ल फ़-इन्नल्ला-ह अदुव्वुल-लिल्काफ़िरीन (98)
जो शख्स ख़ुदा और उसके फरिश्तों और उसके रसूलों और ( ख़ासकर ) जिबराईल व मीकाइल का दुशमन हो तो बेशक खुदा भी ( ऐसे ) काफ़िरों का दुश्मन है (98)

व लकद् अन्जल्ना इलै-क आयातिम् बय्यिनातिन् वमा यक्फुरू बिहा इल्लल्-फ़ासिकून (99)
और ( ऐ रसूल ) हमने तुम पर ऐसी निशानियाँ नाज़िल की हैं जो वाजेए और रौशन हैं और ऐसे नाफरमानों के सिवा उनका कोई इन्कार नहीं कर सकता (99)

अ-व कुल्लमा आ-हदू अह्दन् न-ब-ज़हू फ़रीकुम् मिन्हुम , बल अक्सरूहुम् ला युअ्मिनून (100)
और उनकी ये हालत है कि जब कभी कोई अहद किया तो उनमें से एक फरीक़ ने तोड़ डाला बल्कि उनमें से अक्सर तो ईमान ही नहीं रखते (100)

व लम्मा जाअहुम् रसूलुम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुसद्दिकुल-लिमा म-अहुम् न-ब-ज़ फरीकुम मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब किताबल्लाहि वरा-अ जुहूरिहिम् क-अन्नहुम् ला यअ्लमून (101)
और जब उनके पास खुदा की तरफ से रसूल ( मोहम्मद ) आया और उस किताब ( तौरेत ) की जो उनके पास है तसदीक़ भी करता है तो उन अहले किताब के एक गिरोह ने किताबे खुदा को अपने पसे पुश्त फेंक दिया गोया वह लोग कुछ जानते ही नहीं और उस मंत्र के पीछे पड़ गए (101)

वत्त-बअू मा तत्लुश्शयातीनु अ़ला मुल्कि सुलैमा-न वमा क-फ़-र सुलैमानु व लाकिन्नश्शयाती-न क-फरू युअल्-लि-मूनन्-नासस्-सिह-र , वमा उन्ज़ि-ल अलल् म-ल-कैनि बिबाबि-ल हारू-त व मारू-त , वमा युअल्लिमानि मिन् अ-हदिन् हत्ता यकूला इन्नमा नह्नू फ़ित्नतुन् फ़ला तक्फुर , फ़-य-तअल्लमू-न मिन्हुमा मा युफ़र्रिकू-न बिही बैनल-मरइ व जौजिही , वमा हुम् बिज़ार्री-न बिही मिन् अ-हदिन इल्ला बि-इज्निल्लाहि , व य-तअल्लमू-न मा यजुर्रूहुम् वला यन्फ़अुहुम , व लकद् अलिमू ल-मनिश्तराहु मा लहू फ़िल्आख़िरति मिन् खलाकिन् , व लबिअ्-स मा शरौ बिही अन्फु-सहुम , लौ कानू यअलमून (102)
जिसको सुलेमान के ज़माने की सलतनत में शयातीन जपा करते थे हालाँकि सुलेमान ने कुफ्र नहीं इख़तेयार किया लेकिन शैतानों ने कुफ्र एख़तेयार किया कि वह लोगों को जादू सिखाया करते थे और वह चीजें जो हारूत और मारूत दोनों फ़रिश्तों पर बाइबिल में नाज़िल की गई थी हालाँकि ये दोनों फ़रिश्ते किसी को सिखाते न थे जब तक ये न कह देते थे कि हम दोनों तो फ़क़त ( ज़रियाए आज़माइश ) है पस तो ( इस पर अमल करके ) बेईमान न हो जाना उस पर भी उनसे वह ( टोटके ) सीखते थे जिनकी वजह से मिया बीवी में तफ़रक़ा डालते हालाँकि बगैर इज्ने खुदावन्दी वह अपनी इन बातों से किसी को ज़रर नहीं पहँचा सकते थे और ये लोग ऐसी बातें सीखते थे जो खुद उन्हें नुक़सान पहुँचाती थी और कुछ ( नफा ) पहुँचाती थी बावजूद कि वह यक़ीनन जान चुके थे कि जो शख्स इन ( बुराईयों ) का ख़रीदार हुआ वह आख़िरत में बेनसीब हैं और बेशुबह ( मुआवज़ा ) बहुत ही बड़ा है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों को बेचा काश ( उसे कुछ ) सोचे समझे होते (102)

व लौ अन्नहुम् आमनू वत्तकौ ल-मसू-बतुम् मिन् अिन्दिल्लाहि खैरून् , लौ कानू यअ्लमून (103)*
और अगर वह ईमान लाते और जादू वगैरह से बचकर परहेज़गार बनते तो खुदा की दरगाह से जो सवाब मिलता वह उससे कहीं बेहतर होता काश ये लोग ( इतना तो ) समझते (103)

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तकूलू राअिना व कूलुन्जुर्ना वस्मअू , व लिल्काफ़िरी-न अज़ाबुन अलीम (104)
ऐ ईमानवालों तुम ( रसूल को अपनी तरफ मुतावज्जे करना चाहो तो ) रआना ( हमारी रिआयत कर ) न कहा करो बल्कि उनजुरना ( हम पर नज़रे तवज्जो रख ) कहा करो और ( जी लगाकर ) सुनते रहो और काफिरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है (104)

मा यवद्दुल्लज़ी-न क-फरू मिन अहलिल्-किताबि व ललमुश्रिकी-न अंय्यु नज्ज़-ल अलैकुम् मिन् खैरिम्-मिर्रब्बिकुम , वल्लाहु यख़्तस्सु बिरहमतिहि मंय्यशा-उ , वल्लाहु जुलफ़ज्लिल-अज़ीम (105)
ऐ रसूल अहले किताब में से जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया वह और मुशरेकीन ये नहीं चाहते हैं कि तुम पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से भलाई ( वही ) नाज़िल की जाए और ( उनका तो इसमें कुछ इजारा नहीं ) खुदा जिसको चाहता है अपनी रहमत के लिए ख़ास कर लेता है और खुदा बड़ा फज़ल ( करने ) वाला है (105)

मा नन्सख् मिन् आयतिन् औ नुन्सिहा नअ्ति बिखैरिम् मिन्हा औ मिस्लिहा , अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर (106)
( ऐ रसूल ) हम जब कोई आयत मन्सूख़ करते हैं या तुम्हारे ज़ेहन से मिटा देते हैं तो उससे बेहतर या वैसी ही ( और ) नाज़िल भी कर देते हैं क्या तुम नहीं जानते कि बेशुबहा खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (106)

अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि , वमा लकुम् मिन् दुनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव वला नसीर (107)
क्या तुम नहीं जानते कि आसमान की सलतनत बेशुबहा ख़ास खुदा ही के लिए है और खुदा के सिवा तुम्हारा न कोई सरपरस्त है न मददगार (107)

अम् तुरीदू-न अन् तस्अलू रसूलकुम्
कमा सुइ-ल मूसा मिन् कब्लु , वमंय्-य-तबद्दलिल-कुफ्-र बिल्ईमानि फ़-कद् ज़ल-ल सवाअस्सबील (108)

( मुसलमानों ) क्या तुम चाहते हो कि तुम भी अपने रसूल से वैसै ही ( बेढंगे ) सवालात करो जिस तरह साबिक़ ( पहले ) ज़माने में मूसा से ( बेतुके ) सवालात किए गए थे और जिस शख्स ने ईमान के बदले कुफ्र एख़तेयार किया वह तो यक़ीनी सीधे रास्ते से भटक गया (108)

वद्-द कसीरूम मिन् अहलिल-किताबि लौ यरूद्दूनकुम् मिम्-बअदि ईमानिकुम् कुफ्फारन् ह-सदम् मिन् अिन्दि अन्फुसिहिम् मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुमुल-हक्कु फ़अफू वस्फ़हू हत्ता यअ्तियल्लाहु बिअमरिही , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर • (109)
( मुसलमानों ) अहले किताब में से अक्सर लोग अपने दिली हसद की वजह से ये ख्वाहिश रखते हैं कि तुमको ईमान लाने के बाद फिर काफ़िर बना दें ( और लत्फ तो ये है कि ) उन पर हक़ ज़ाहिर हो चुका है उसके बाद भी ( ये तमन्ना बाक़ी है ) पस तुम माफ करो और दरगज़र करो यहाँ तक कि खुदा अपना ( कोई और ) हक्म भेजे बेशक खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (109)

व अक़ीमुस्सला-त व आतुज्जका-त , वमा तुकद्दिमू लिअन्फुसिकुम मिन् खैरिन् तजिदूहु अिन्दल्लाहि , इन्नल्ला-ह बिमा तअ्मलू-न बसीर (110)
और नमाज़ पढ़ते रहो और ज़कात दिये जाओ और जो कुछ भलाई अपने लिए ( खुदा के यहाँ ) पहले से भेज दोगे उस ( के सवाब ) को मौजूद पाआगे जो कुछ तुम करते हो उसे खुदा ज़रूर देख रहा है (110)

व कालू लंय्यदखुलल जन्न-त इल्ला मन् का-न हूदन् औ नसारा , तिल-क अमानिय्युहुम , कुल हातू बुरहानकुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (111)
और ( यहूद ) कहते हैं कि यहूद ( के सिवा ) और ( नसारा कहते हैं कि ) नसारा के सिवा कोई बेहिश्त में जाने ही न पाएगा ये उनके ख्याली पुलाव है ( ऐ रसूल ) तुम उन से कहो कि भला अगर तुम सच्चे हो कि हम ही बेहिश्त में जाएँगे तो अपनी दलील पेश करो (111)

बला , मन् अस्ल-म वज्हहू लिल्लाहि व हु-व मुह्सिनुन् फ़-लहू अज्रूहू अिन्-द रब्बिही वला ख़ौफुन अलैहिम व ला हुम् यह्ज़नून (112)*
अलबत्ता जिस शख्स ने खुदा के आगे अपना सर झुका दिया और अच्छे काम भी करता है तो उसके लिए उसके परवरदिगार के यहाँ उसका बदला ( मौजूद ) है और ( आखेरत में ) ऐसे लोगों पर न किसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐसे लोग ग़मगीन होगे (112)

व कालतिल यहूदु लैसतिन्नसारा अला शैइवं व कालतिन्नसारा लैसतिल यहूदु अला शैइंव व हुम् यतलूनल्किता-ब , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न मिस्-ल कौलिहिम् फ़ल्लाहु यह्कुमु बैनहुम् यौमल-कियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफून (113)
और यहूद कहते हैं कि नसारा का मज़हब कुछ ( ठीक ) नहीं और नसारा कहते हैं कि यहूद का मज़हब कुछ ( ठीक ) नहीं हालाँकि ये दोनों फरीक़ किताबे ( खुदा ) पढ़ते रहते हैं इसी तरह उन्हीं जैसी बातें वह ( मुशरेकीन अरब ) भी किया करते हैं जो ( खुदा के एहकाम ) कुछ नहीं जानते तो जिस बात में ये लोग पड़े झगड़ते हैं ( दुनिया में तो तय न होगा ) क़यामत के दिन खुदा उनके दरमियान ठीक फैसला कर देगा (113)

व मन् अज्लमु मिम्मम्-म-न-अ मसाजिदल्लाहि अंय्युज्क-र फ़ीहस्मुहू व-सआ फी खराबिहा , उलाइ-क मा-का-न लहुम् अय्यद्खुलूहा इल्ला ख़ा-इफ़ी-न , लहुम् फ़िद्दुन्या खिज्युंव व-लहुम् फ़िल् आखिरति अ़ज़ाबुन अज़ीम (114)
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो खुदा की मसजिदों में उसका नाम लिए जाने से ( लोगों को ) रोके और उनकी बरबादी के दर पे हो , ऐसों ही को उसमें जाना मुनासिब नहीं मगर सहमे हुए ऐसे ही लोगों के लिए दुनिया में रूसवाई है और ऐसे ही लोगों के लिए आखेरत में बड़ा भारी अज़ाब है (114)

व लिल्लाहिल् मश्रिकु वल्-मग्रिबु फ़-अैनमा तुवल्लू फ़-सम्-म वज्हुल्लाहि , इन्नल्ला-ह वासिअन् अलीम (115)
( तुम्हारे मसजिद में रोकने से क्या होता है क्योंकि सारी ज़मीन ) खुदा ही की है ( क्या ) पूरब ( क्या ) पश्चिम बस जहाँ कहीं क़िब्ले की तरफ रूख़ करो वही खुदा का सामना है बेशक खुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और खूब वाक़िफ है (115)

व कालुत्-तख़ज़ल्लाहु व लदन सुब्हानहू , बल-लहू मा फिस्समावाति वल्अर्जि , कुल्लुल्लहू कानितून (116)
और यहूद कहने लगे कि खुदा औलाद रखता है हालाँकि वह ( इस बखेड़े से ) पाक है बल्कि जो कुछ ज़मीन व आसमान में है सब उसी का है और सब उसकी के फरमाबरदार हैं (116)

बदीअुस्समावाति वलअर्जि , व इज़ा कज़ा अम्रन् फ़-इन्नमा यकूलु लहू कुन् फ़-यकून (117)
( वही ) आसमान व ज़मीन का मोजिद है और जब किसी काम का करना ठान लेता है तो उसकी निसबत सिर्फ कह देता है कि ” हो जा ” पस वह ( खुद ब खुद ) हो जाता है (117)

व कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न लौ ला युकल्लिमुनल्लाहु औ तअतीना आयतुन् , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न मिन् कब्लिहिम् मिस्-ल कौलिहिम् , तशा-बहत् कुलू बुहुम , कद् बय्यन्नल – आयाति लिकौमिंय्यूकिनून (118)
और जो ( मुशरेकीन ) कुछ नहीं जानते कहते हैं कि खुदा हमसे ( खुद ) कलाम क्यों नहीं करता , या हमारे पास ( खुद ) कोई निशानी क्यों नहीं आती , इसी तरह उन्हीं की सी बाते वह कर चुके हैं जो उनसे पहले थे उन सब के दिल आपस में मिलते जुलते हैं जो लोग यक़ीन रखते हैं उनको तो अपनी निशानियाँ क्यों साफतौर पर दिखा चुके (118)

इन्ना अरसल्ना-क बिल्हक्कि बशीरंव व-नज़ीरंव वला तुस्अलु अन् अस्हाबिल जहीम (119)
( ऐ रसूल ) हमने तुमको दीने हक़ के साथ ( बेहिश्त की ) खुशख़बरी देने वाला और ( अज़ाब से ) डराने वाला बनाकर भेजा है और दोज़ख़ियों के बारे में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा (119)

व लन् तर्जा अन्कल्-यहूदु व लन्-नसारा हत्ता तत्तबि-अ मिल्ल-तहुम , कुल इन्-न हुदल्लाहि हुवल्-हुदा , व-ल-इनित्त-बअ-त अहवा-अहुम् बअ्दल्लज़ी जाअ-क मिनल-अिल्मि मा ल-क मिनल्लाहि मिव्वलिय्यिंव वला नसीर (120)
और ( ऐ रसूल ) न तो यहूदी कभी तुमसे रज़ामंद होगे न नसारा यहाँ तक कि तुम उनके मज़हब की पैरवी करो ( ऐ रसूल उनसे ) कह दो कि बस खुदा ही की हिदायत तो हिदायत है ( बाक़ी ढकोसला है ) और अगर तुम इसके बाद भी कि तुम्हारे पास इल्म ( कुरान ) आ चुका है उनकी ख्वाहिशों पर चले तो ( याद रहे कि फिर ) तुमको खुदा ( के ग़ज़ब ) से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा न मददगार (120)

अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यत्लूनहू हक्-क तिलावतिही , उलाइ-क युअ्मिनू-न बिही , व मंय्यक्फुर बिही फ़-उलाइ-क हुमुल ख़ासिरून (121)*
जिन लोगों को हमने किताब ( कुरान ) दी है वह लोग उसे इस तरह पढ़ते रहते हैं जो उसके पढ़ने का हक़ है यही लोग उस पर ईमान लाते हैं और जो उससे इनकार करते हैं वही लोग घाटे में हैं (121)

या बनी इस्-राई लज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व अन्नी फज्ज़ल्तुकुम् अलल आलमीन (122)
बनी इसराईल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंनं तुम को दी हैं और ये कि मैंने तुमको सारे जहाँन पर फजीलत दी (122)

वत्तकू यौमल्ला-तज्ज़ी नफ़्सुन् अन्नफसिन् शैअंव वला युक्बलु मिन्हा अदलुंव वला तन्फ़अुहा शफाअतुंव वला हुम् युन्सरून (123)
और उस दिन से डरो जिस दिन कोई शख्स किसी की तरफ से न फिदया हो सकेगा और न उसकी तरफ से कोई मुआवेज़ा कुबूल किया जाएगा और न कोई सिफारिश ही फायदा पहुचाँ सकेगी , और न लोग मदद दिए जाएँगे (123)

व इज़िब्तला इब्राही-म रब्बुहू बि-कलिमातिन् फ़-अ-तम्म- हुन्-न , का-ल इन्नी जाअिलु-क लिन्नासि इमामन् , का-ल व मिन् जुर्रिय्यती , का-ल ला यनालु अह्दिज्-ज़ालिमीन (124)
( ऐ रसल ) बनी इसराईल को वह वक्त भी याद दिलाओ जब इबराहीम को उनके परवरदिगार ने चन्द बातों में आज़माया और उन्होंने पूरा कर दिया तो खुदा ने फरमाया मैं तुमको ( लोगों का ) पेशवा बनाने वाला हूँ ( हज़रत इबराहीम ने ) अर्ज़ की और मेरी औलाद में से फरमाया ( हाँ मगर ) मेरे इस अहद पर ज़ालिमों में से कोई शख्स फ़ायज़ नहीं हो सकता (124)

व इज् जअल्-नल्-बै-त मसा-बतल् लिन्नासि व अमनन् , वत्तखिजू मिम् मक़ामि इब्राही-म मुसल्लन् , व अहिद्ना इला इब्राही-म व इस्माअी-ल अन् तह्हिरा बैति-य लित्ता-इफ़ी-न वल् आकिफ़ी-न वर्रूक्क-अिस्सुजूद (125)
( ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ ) जब हमने ख़ानए काबा को लोगों के सवाब और पनाह की जगह क़रार दी और हुक्म दिया गया कि इबराहीम की ( इस ) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल से अहद व पैमान लिया कि मेरे ( उस ) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और रूकू और सजदा करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखो (125)

व इज् का-ल इब्राहीमु रब्बिज्अ़ल हाज़ा ब-लदन् आमिनंव्-वरज़ुक् अहलहू मिनस्-स-मराति मन् आम-न मिन्हुम् बिल्लाहि वलयौमिल आखिरि , का-ल वमन् क-फ-र फ़-उमत्तिअु़हू कलीलन सुम्-म अज्तरर्रूहू इला अज़ाबिन्नारि , व बिअसल्-मसीर (126)
और ( ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ ) जब इबराहीम ने दुआ माँगी कि ऐ मेरे परवरदिगार इस ( शहर ) को पनाह व अमन का शहर बना , और उसके रहने वालों में से जो खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए उसको तरह – तरह के फल खाने को दें खुदा ने फरमाया ( अच्छा मगर ) वो कुफ्र इख़तेयार करेगा उसकी दुनिया में चन्द रोज़ ( उन चीज़ो से ) फायदा उठाने दूंगा फिर ( आखेरत में ) उसको मजबूर करके दोज़ख़ की तरफ खींच ले जाऊँगा और वह बहुत बुरा ठिकाना है (126)

व इज् यरफ़अु़ इब्राहीमुल् कवाअि-द् मिनल बैति व इस्माअीलु , रब्बना तकब्बल मिन्ना , इन्न-क अन्तस्समीअुल-अलीम (127)
और ( वह वक्त याद दिलाओ ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बुनियादें बुलन्द कर रहे थे ( और दुआ ) माँगते जाते थे कि ऐ हमारे परवरदिगार हमारी ( ये ख़िदमत ) कुबूल कर बेशक तूही ( दूआ का ) सुनने वाला ( और उसका ) जानने वाला है (127)

रब्बना वज्अल्ना मुस्लिमैनि ल-क व मिन् जुर्रिय्यतिना उम्मतम् मुस्लि-मतल ल-क व अरिना मनासि-क-ना व तुब् अलैना इन्न-क अन्तत्तव्वाबुर्-रहीम (128)
( और ) ऐ हमारे पालने वाले तू हमें अपना फरमाबरदार बन्दा बना हमारी औलाद से एक गिरोह ( पैदा कर ) जो तेरा फरमाबरदार हो , और हमको हमारे हज की जगहों दिखा दे और हमारी तौबा कुबूल कर , बेशक तू ही बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान है (128)

रब्बना वब्अस् फ़ीहिम् रसूलम् मिन्हुम यत्लू अलैहिम् आयाति-क व युअल्लिमुहुमुल-किता-ब वल-हिक्म-त व-युज़क्कीहिम , इन्न-क अन्तल अज़ीजुल-हकीम (129)*
( और ) ऐ हमारे पालने वाले मक्के वालों में उन्हीं में से एक रसूल को भेज जो उनको तेरी आयतें पढ़कर सुनाए और आसमानी किताब और अक्ल की बातें सिखाए और उन ( के नुफूस ) के पाकीज़ा कर दें बेशक तू ही ग़ालिब और साहिबे तदबीर है (129)

व मंय्यरगबु अम्-मिल्लति इब्राही-म इल्ला मन् सफ़ि-ह नफ्सहू , व-ल-कदिस्तफैनाहु फिद्दुन्या व इन्नहू फ़िल-आखिरति लमिनस्सालिहीन (130)
और कौन है जो इबराहीम के तरीक़े से नफरत करे मगर जो अपने को अहमक़ बनाए और बेशक हमने उनको दुनिया में भी मुन्तिख़ब कर लिया और वह ज़रूर आखेरत में भी अच्छों ही में से होगे (130)

इज़ का-ल लहू रब्बुहू असलिम् का-ल अस्लम्तु लि-रब्बिल् आलमीन (131)
जब उनसे उनके परवरदिगार ने कहा इस्लाम कुबूल करो तो अर्ज़ में सारे जहाँ के परवरदिगार पर इस्लाम लाया (131)

व वस्सा बिहा इब्राहीमु बनीहि व यअकूबु , या बनिय्-य इन्नल्लाहस्तफ़ा लकुमुद्दी-न फ़ला तमूतुन्-न इल्ला व अन्तुम् मुस्लिमून (132)
और इसी तरीके क़ी इबराहीम ने अपनी औलाद से वसीयत की और याकूब ने ( भी ) कि ऐ फरज़न्दों खुदा ने तुम्हारे वास्ते इस दीन ( इस्लाम ) को पसन्द फरमाया है पस तुम हरगिज़ न मरना मगर मुसलमान ही होकर (132)

अम् कुन्तुम् शु-हदा-अ इज् ह-ज़-र यअकूबल-मौतु इज़् का-ल लि-बनीहि मा तअबुदू-न मिम्-बअ्दी , कालू नअ्बुदु इलाह-क व इला-ह आबाइ-क इब्राही-म व इस्माअी़-ल व इसहा-क इलाहंव्-वाहिदंव-व नह्नु लहू मुस्लिमून (133)
( ऐ यहूद ) क्या तुम उस वक्त मौजूद थे जब याकूब के सर पर मौत आ खडी हईउस वक्त उन्होंने अपने बेटों से कहा कि मेरे बाद किसी की इबादत करोगे कहने लगे हम आप के माबूद और आप के बाप दादाओं इबराहीम व इस्माइल व इसहाक़ के माबूद व यकता खुदा की इबादत करेंगे और हम उसके फरमाबरदार हैं (133)

तिल-क उम्मतुन् कद् ख़लत् लहा मा क-सबत् व लकुम् मा क-सब्तुम् व ला तुस्अ्लू-न अम्मा कानू यअ्मलून (134)
( ऐ यहूद ) वह लोग थे जो चल बसे जो उन्होंने कमाया उनके आगे आया और जो तुम कमाओगे तुम्हारे आगे आएगा और जो कुछ भी वह करते थे उसकी पूछगछ तुमसे नहीं होगी (134)

व कालू कूनू हूदन् औ नसारा तह्तदू , कुल बल मिल्ल-त इब्राही-म हनीफ़न् , व मा का-न मिनल् – मुश्रिकीन (135)
( यहूदी ईसाई मुसलमानों से ) कहते हैं कि यहूद या नसरानी हो जाओ तो राहे रास्त पर आ जाओगे ( ऐ रसूल उनसे ) कह दो कि हम इबराहीम के तरीक़े पर हैं जो बातिल से कतरा कर चलते थे और मुशरेकीन से न थे (135)

कूलू आमन्ना बिल्लाहि वमा उन्जि-ल इलैना वमा उन्ज़ि-ल इला इब्राही-म व इस्माअी-ल व इस्हा-क व यअकू-ब वल-अस्बाति वमा ऊति-य मूसा व अीसा वमा ऊतियन्नबिय्यू-न मिर्रब्बिहिम् ला नुफ़र्रिकु बै-न अ-हदिम्-मिन्हुम् व नह्नु लहू मुस्लिमून (136)
( और ऐ मुसलमानों तुम ये ) कहो कि हम तो खुदा पर ईमान लाए हैं और उस पर जो हम पर नाज़िल किया गया ( कुरान ) और जो सहीफ़े इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकूब और औलादे याकूब पर नाज़िल हुए थे ( उन पर ) और जो किताब मूसा व ईसा को दी गई ( उस पर ) और जो और पैग़म्बरों को उनके परवरदिगार की तरफ से उन्हें दिया गया ( उस पर ) हम तो उनमें से किसी ( एक ) में भी तफरीक़ नहीं करते और हम तो खुदा ही के फरमाबरदार हैं (136)

फ़-इन् आमनू बिमिस्लि मा आमन्तुम् बिही फ़-कदिहतदौ व इन तवल्लौ फ-इन्नमा हुम् फ़ी शिकाकिन् फ़-स-यक्फी-कहुमुल्लाहु व-हुवस्समीअुल अलीम (137)
पस अगर ये लोग भी उसी तरह ईमान लाए हैं जिस तरह तुम तो अलबत्ता राहे रास्त पर आ गए और अगर वह इस तरीके से मुँह फेर लें तो बस वह सिर्फ तुम्हारी ही ज़िद पर है तो ( ऐ रसूल ) उन के शर से ( बचाने को ) तुम्हारे लिए खुदा काफ़ी होगा और वह ( सबकी हालत ) खूब जानता ( और ) सुनता है (137)

सिब-गतल्लाहि व मन् अहसनु मिनल्लाहि सिब-गतंव व नह्नु लहू आबिदून (138)
( मुसलमानों से कहो कि ) रंग तो खुदा ही का रंग है जिसमें तुम रंगे गए और खुदाई रंग से बेहतर कौन रंग होगा और हम तो उसी की इबादत करते हैं (138)

कुल अतुहाज्जू-नना फ़िल्लाहि व हुव रब्बुना व रब्बुकुम् व लना अअ्मालुना व लकुम् अअ्मालुकुम व नह्नु लहू मुख़्लिसून (139)
( ऐ रसूल ) तुम उनसे पूछो कि क्या तुम हम से खुदा के बारे झगड़ते हो हालाँकि वही हमारा ( भी ) परवरदिगार है ( वही ) तुम्हारा भी ( परवरदिगार है ) हमारे लिए है हमारी कारगुज़ारियाँ और तुम्हारे लिए तुम्हारी कारसतानियाँ और हम तो निरेखरे उसी में हैं (139)

अम् तकूलू-न इन्-न इब्राही-म व इस्माअी-ल व इस्हा-क व यअ्कू-ब वल्-अस्बा-त कानू हूदन औ नसारा , कुल अ-अन्तुम् अअ्लमु अमिल्लाहु व मन् अ़ज्लमु मिम्मन् क-त-म शहा-दतन् अिन्दहू मिनल्लाहि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (140)
क्या तुम कहते हो कि इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौदें याकूब सब के सब यहूदी या नसरानी थे ( ऐ रसूल उनसे ) पूछो तो कि तुम ज्यादा वाक़िफ़ हो या खुदा और उससे बढ़कर कौन ज़ालिम होगा जिसके पास खुदा की तरफ से गवाही ( मौजूद ) हो ( कि वह यहूदी न थे ) और फिर वह छिपाए और जो कुछ तुम करते हो खुदा उससे बेख़बर नहीं (140)

तिल-क उम्मतुन् कद् ख़लत् लहा मा क-सबत् व लकुम् मा क-सब्तुम् वला तुस्अलू-न अम्मा कानू यअ्मलून (141)*
ये वह लोग थे जो सिधार चुके जो कुछ कमा गए उनके लिए था और जो कुछ तुम कमाओगे तुम्हारे लिए होगा और जो कुछ वह कर गुज़रे उसकी पूछगछ तुमसे न होगी (141)

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Comments 1

  1. Md Nizam says:
    2 weeks ago

    Mujhe pura kuran Pak Hindi me chahiye

    Reply

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